कभी रिमझिम बारिश तो कभी शीतलहर के साथ आसमान में छाया घना कोहरा। यही तो इन दिनों मौसम का हाल है। इसी मौसम में संगम की रेती पर एक माह का कल्पवास भी चल रहा है। खराब मौसम पर आस्था भारी पड़ रही है। संगम तीरे कल्पवास कर रहे लोगों की आस्था ऐसे मौसम ने भी नहंीं डिगा सकी है। हालांकि कल्पवास करने वाले अधिकांश प्रौढ़ या वृद्ध ही हैं। कंपकंपाती ठंड में भी कल्पवासी सुबह उठकर गंगा स्नान और जप-तप कर रहे हैं। यही हाल साधु-संन्यासियों का भी है।
चाहे जैसा मौसम हो, कल्पवासी सुबह तीन से चार बजे उठ जाते हैं
संगम क्षेत्र में डेढ़ से दो लाख लोग हर समय रहते हैं। यहां पर एक लाख से अधिक लोग कल्पवास कर रहे हैं। मौसम खराब होने के बावजूद वह आस्था की डुबकी लगाने से नहीं चूकते हैं। गुरुवार की रात से मौसम खराब हुआ और बूंदाबादी शुरू हो गई थी। शुक्रवार सुबह बारिश तेज हुई और फिर दिन चढ़ते तक बूंदाबांदी होती रही। शुक्रवार की रात में भी बारिश हुई और सुबह आसमान में घना कोहरा छाया रहा। इससे कड़ाके की ठंड भी है। इसके बावूजद जप-तप के लिए संगम की धरती पर आए लोग सुबह तीन से चार बजे उठ गए। झूंसी की तरफ तंबू में रहकर कल्पवास कर रहे राम अनुज पांडेय, कुसुम देवी पांडेय, भोला नाथ पांडेय, प्रेमसिंह यादव, दीपक पांडेय, सत्येंद्र पांडेय, अमृता देवी, राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि वह सुबह मौसम देखकर परेशानी तो होती है लेकिन स्नान और ध्यान में मौसम रोड़ा नहीं बनता। चूंकि झूंसी साइड स्नान के लिए घाट नहीं बना है इसलिए करीब दो किलोमीटर का सफर तय करके संगम पर जाना पड़ रहा है।
कल्पवासी बोले, गंगा मइया हमें हिम्मत देती हैं
कल्पवासी कहते हैं कि वैसे इतना कष्ट तो हर कल्पवास में होता है। बोले गंगा मइया हमें हिम्मत देती हैं। बारिश से निपटने के लिए कई लोग छाता भी रखे हैं लेकिन मानसिक रूप से बारिश झेलने के लिए तैयार रहते हैं। यहां पर हर तंबू के ऊपर पालीथिन लगी है इसलिए वहां रखा सामान नहीं भीगता। सुबह पांच बजे तक लोग स्नान और पूजन करके भजन शुरू कर देते हैं। चूंकि छह बजे बिजली कट जाती है, इसलिए इससे पहले तक चाय भी पी लेते हैं।