करीब चार साल पहले दीपिका पादुकोण को फिल्म ‘पीकू’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया . मंच पर रेखा के हाथ से ‘ब्लैक लेडी’ को अपने हाथ में लेने के बाद दीपिका पादुकोण ने नम आंखों के साथ अपने पिता का एक खत पढ़ा. खत के जरिए दीपिका ने अपने मल्टीटैलेंट, सफल करियर, बिंदास शख्सियत और इस सबके बावजूद बेहद विनम्र स्वभाव का राज सबके साथ साझा किया.
दीपिका को एक सफल मॉडल और एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में तो सभी जानते हैं, लेकिन उस दिन प्रकाश पादुकोण की बेटी होने का उनका रूप दुनिया के सामने आया. देश में बैडमिंटन के लिए जमीन तैयार करने वाले प्रकाश पादुकोण ने अपनी बेटी को एक सुंदर व्यक्तित्व के साथ ही एक सुंदर व्यक्ति होने के संस्कार भी दिए और हर कदम पर अपने सपनों को हासिल करने की प्रेरणा के साथ ही उन्हें हासिल न कर पाने पर हारकर न बैठ जाने का जज्बा भी दिया.
18 वर्ष की उम्र में दीपिका ने फिल्मों में अपना करियर बनाने के लिए मुंबई जाने का फैसला किया. माता पिता को चिंता थी कि इतने बड़े शहर में उनकी लड़की अपने लिए कैसे जगह बना पाएगी, लेकिन वह अपनी बेटी को अपने दिल की सुन लेने देना चाहते थे. दीपिका को लिखे पत्र में उनके पिता ने कहा कि वह अपनी बेटी के सपनों के रास्ते में नहीं आना चाहते थे. और यही सोचकर उसे मुंबई जाने दिया कि अगर सफल हुई तो हम उस पर गर्व करेंगे और अगर सफल नहीं हो पाई तो उसे इस बात का मलाल नहीं रहेगा कि हमने उसे उसके मन की नहीं करने दी.
वह अपने माता पिता के घर में एक स्टार की तरह नहीं बल्कि एक बेटी की तरह जा कर रहती हैं. घर में मेहमान आए हों तो हॉल में सो जाती हैं, अपना बिस्तर खुद बनाती हैं और जीवन के हर उतार चढ़ाव में अपने पैर जमीन पर टिकाए रखने की कोशिश करती हैं.
दीपिका की फिल्मों की बात करें तो वह ‘बाजीराव मस्तानी’ से लेकर ‘पद्मावत’ और ‘ये जवानी है दीवानी’ से लेकर ‘पीकू’ तक में तमाम तरह की भूमिकाएं निभा चुकी हैं. हाल ही में आई उनकी फिल्म ‘छपाक’ में उन्होंने एक तेजाब हमले की पीड़िता का किरदार निभाकर अपने अभिनय को एक नया आयाम दिया है . उन्होंने जेएनयू प्रकरण में अपनी मौजूदगी से विचारधारा के स्तर पर एक वर्ग का समर्थन किया.
दीपिका को उसके पिता ने सलाह दी थी कि वह पैसे और सफलता को महत्व तो दे पर मानवीय मूल्यों, ईश्वर के प्रति आस्था और माता पिता को हमेशा इनसे पहले मानें, वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों से ही आगे बढ़ने का रास्ता निकालें और इस बात को हमेशा याद रखें कि आप हमेशा नहीं जीत सकते . कभी जो हारना पड़े तो उसे भी पूरे हौंसले के साथ स्वीकार करें. सफलता की ऊंचाइयों पर खड़े हर इनसान के लिए यह एक अनुकरणीय सीख है.