शीतकालीन वर्षा बेहतर होने से जहां गेहूं, गन्ना, चना और जौ जैसी फसलों की बेहतर पैदावार होने की उम्मीद बढ़ी, वहीं आलू, सरसों व तोरिया आदि में नुकसान दिखने लगा है।

वर्षा व कई स्थानों पर ओलावृष्टि से सरसों, राई और तोरिया की फसलें गिरने से किसानों की परेशानी बढ़ी है। आलू के खेतों में पानी की अधिकता से गलन फैलने का डर बना है तो कई स्थानों में बीमारी का प्रकोप भी नजर आने लगा है। मंडियों में आवक कम होने से आलू व सब्जियों के दामों में भी उछाल आया है।
पिछले वर्ष नवंबर के अंतिम सप्ताह से प्रदेश में अधिकतर जिलों में इंद्रदेव की भरपूर कृपा रही है। गत पांच वर्ष के आंकड़ें देखें तो इस बार ज्यादा वर्षा हुई और कई स्थानों पर ओले भी गिरे।
दिसंबर में केवल नौ जिले ही ऐसे थे जहां वर्षा नहीं हुई जबकि 40 जिलों में औसत से अधिक बरसात हो जाने से फसलों पर असर दिखने लगा है।खासकर आलू, सरसों व तोरिया की फसलों को नुकसान अधिक दिखा है।
लखनऊ के किसान सत्यनारायण कहते हैं कि अधिक वर्षा आलू के लिए नुकसान देह है। खेतों में पानी भर जाने से गलन फैलने का डर बना है।महेश बताते हैं कि सरसों व तोरिया में नुकसान कुछ ज्यादा है क्योंकि फसल गिरने लगी है। संयुक्त निदेशक कृषि राजेश गुप्ता का कहना है कि शीतकालीन वर्षा का अच्छा होना खाद्यान्न उत्पादन के लिए शुभ संकेत है। खासकर गेहूं, जौ, मटर व चना की फसल बेहतर होंगी।
मौसम खराब होने का सीधा असर सब्जियों के दाम पर भी पड़ा है। कई स्थानों पर ओलावृष्टि होने से आलू व सब्जी की फसलों को क्षति हुई। आलू किसान संजीव का कहना है कि खेतों में पानी भरने से आलू गाजर आदि की खोदाई धीमी पड़ी और अन्य सब्जियों की कटाई का कार्य भी बाधित हुआ। मंडी में आवक कम होने से कीमतों में अस्थायी उछाल आया है।
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