काल चक्र का मनुष्य के जीवन में क्या पड़ता है प्रभाव…

समय को बहुत ही बलवान माना गया है। समय का चक्र निरंतर चलता रहता है इसी चलते चक्र को काल चक्र कहते हैं। सरल शब्दों में कहें तो काल का अर्थ होता है निरंतर चलने वाला समय का चक्र। समय के इसी पहिए में हर मनुष्य के जीवन में अच्छा और बुरा समय आता है। लेकिन जो व्यक्ति बुरे समय पर विजय प्राप्त कर लेता है वही जीवन में सफल होता है। वहीं जो व्यक्ति बुरे वक्त को अपने ऊपर हावी होने देता है। उसका पतन हो जाता है।

मनुष्य हमेशा से ही प्रकृति प्रदत्त चीजों को जानने का इच्छुक रहा है। इसलिए कभी-कभार जिज्ञासावस आपके मन में यह प्रश्न जरूर उठा होगा कि ये दिन और रात कैसे बनते हैं? समय कि गणना कैसे की जाती है? ये ऋतुओं का परिवर्तन कैसे होता है? ये काल गणना क्या है?समय चक्र क्या है? हालांकि मानव ने अपनी सुविधा के अनुसार इसे अन्य-अन्य नामों से विभाजित किया है। लेकिन हम यहां  सनातन परंपरा के अनुसार समझने की कोशिश करेंगे।

भारतीय विद्वानों के अनुसार काल गणना
हमारे प्राचीन विद्वानों ने कालचक्र का वर्णन करते हुए काल की सबसे छोटी इकाई परमाणु को बताया है। वायु पुराण में दिए गए विवरण के अनुसार दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं। हम इसको कुछ इस तरह से समझ सकते हैं।
2 परमाणु से 1 अणु
3 अणु से 1 त्रसरेणु
3 त्रेसरेणु से 1 त्रुटि
100 त्रुटि से 1वेध
3वेध से 1 लव
3 लव से एक निमेष यानि एक क्षण बनता है। इसी तरह से तीन निमेष से एक काष्ठा बनती है, 15 काष्ठा से एक लघु और 15 लघु से एक नाडिका, दो नाडिकाओं से एक मुहुर्त, 6 नाडिका से एक प्रहर तथा आठ प्रहर मिलकर एक दिन और रात का निर्माण करते हैं।

उत्तरायण और दक्षिणायन क्या होता है?
एक महीने में 15-15 दिन के दो पक्ष होते है जिसमें एक पक्ष को शुक्ल पक्ष और दूसरे को कृष्ण पक्ष कहते हैं। इसी तरह से एक वर्ष में दो आयन माने गए हैं – दक्षिणायन और उत्तरायण।

वैदिक काल में महीनों के नाम कैसे निश्चित किए गए?
वैदिक काल में महीनों के नाम ऋतुओं के नाम पर रखे गए हैं। लेकिन बाद में इन नामों को बदलकर नक्षत्रों के आधार पर कर दिया गया। जो इस प्रकार हैं-चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। विद्वानों ने पल-पल की गणना स्पष्ट की है। काल खंडो को भी निश्चित नाम दिए गए हैं और दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर रखे गए हैं। रवि, सोम (चंद्रमा), मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि।

क्या होता है मानव वर्ष और दिव्य वर्ष?
प्राचीन साहित्य में काल गणना के अनुसार मानव वर्ष और दिव्य वर्ष का उल्लेख भी किया गया है। मानव वर्ष मनुष्यों का वर्ष होता है। जो सामान्यतः 360 दिन का माना गया है। आवश्यकतानुसार इसमें दिन घटते बढ़ते रहते हैं। जिसमें छह माह दिन और छह माह रात्रि रहती है। लेकिन मनुष्य के 360 वर्ष मिलाकर देवताओं का एक वर्ष बनता

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