एकीकृत बिहार में कभी राजधानी पटना से रांची चली जाती थी। विभाजन के बाद यह नहीं हो रहा है। लेकिन, हरेक विधानसभा चुनाव में राज्य की राजनीति कुछ दिनों के लिए रांची चली जाती है। इसबार भी यही संभावना है।
राज्य के दो प्रमुख दल जदयू और राजद मुस्तैदी से झारखंड विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। एनडीए की सहयोगी लोजपा का मन भी ललचा रहा है। लेकिन, उसके साथ शर्त यही है कि भाजपा की इजाजत मिले। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में लोजपा के उम्मीदवार खड़े थे। भाजपा की इजाजत न मिलने के कारण उसके उम्मीदवार मैदान में जाने से पहले घर लौट गए।
मालूम हो कि झारखंड की पहली बाबूलाल मरांडी की सरकार जदयू की मदद से बनी थी। जदयू ने शिबूू सोरेन की सरकार का भी समर्थन किया था। लंबे समय से झारखंड की राजनीति में पिछड़ रहा जदयू 2019 के विधानसभा चुनाव में अपना आधार मजबूत करना चाहता है।
मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार खुद नजर रख रहे हैं। उनके करीबी राज्यसभा सदस्य आरसीपी सिंह लगातार जिलों का दौरा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री तो प्रचार के लिए झारखंड जाएंगे। उनके पार्टी के कई बड़े नेता वहां दो महीने कैंप करेंगे।
जदयू ने साफ कर दिया है कि भाजपा के साथ उसका सिर्फ बिहार में समझौता है। दूसरे राज्यों में उम्मीदवार खड़े करने के लिए वह स्वतंत्र है। बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से जदयू के तालमेल होने की संभावना जाहिर की जा रही है।
एक अन्य प्रमुख दल राजद का अघोषित मुख्यालय इन दिनों रांची में ही है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद रांची में रहकर ही सजा काट रहे हैं। पार्टी के सभी फैसले वही करते हैं। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजद के अन्य प्रभावशाली नेता भी झारखंड में ही कैंप करेंगे।
राजद महागठबंधन का हिस्सा है। उसके पांच से आठ विधानसभा सीटों पर चुनाव लडऩे की संभावना है। राष्ट्रीय दल भाजपा के नेताओं का झारखंड आना-जाना शुरू है। भाजपा के प्रभारी की हैसियत से बिहार के पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव लंबे समय से कैंप कर रहे हैं।