जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान ही नहीं चीन भी भारत को आंख दिखा रहा है साथ ही नसीहत भी दे रहा है। लेकिन, हैरत की बात ये है कि इन दोनों ही देशों को अपने यहां के वो लोग नजर नहीं आते हैं जो उनकी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाए हुए हैं। पाकिस्तान की बात करें तो बलूचिस्तान का मसला किसी से छिपा नहीं रहा है तो वहीं चीन के लिए हांगकांग का मुद्दा उसके गले की फांस बना हुआ है।
यह मसला इतना बढ़ गया है कि इस पर अमेरिका उसको सीख दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ चीन का कहना है कि यह उसका अंदरुणी मामला है, लिहाजा अमेरिका को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। इतना ही नहीं जानकार मानते हैं कि यहां पर चल रही उठापठक में चीन की अर्थव्यवस्था डगमगा भी सकती है।
इनका मामला अंदरुणी दूसरे का अंतरराष्ट्रीय
इसको अंतरराष्ट्रीय समुदाय से एक मजाक ही कहा जाएगा कि चीन के लिए जम्मू कश्मीर आखिर कैसे उसका या अंतरराष्ट्रीय मुद्दा हो जाता है और हांगकांग कैसे अंदरुणी रह जाता हैवहीं पाकिस्तान का भी बलूचिस्तान का मुद्दा अंदरुणी हो जाता है। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन और पाकिस्तान दोनों ही जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया को भ्रमित करने की कोशिश करने में लगे हैं। हांगकांग के मुद्दे की बात करें तो वहां पर बीते दो माह से हालात लगभग बेकाबू होते जा रहे हैं। हांगकांग लोगों पर नजर रखने और उन्हें काबू में करने के लिए लगातार वहां पर पुलिस और सैन्यबलों की संख्या में इजाफा किया जा रहा है।
यूएस सांसद के बयान से चिढ़ा चीन
चीन की तरफ से लगातार कहा जा रहा है कि वह किसी भी तरह के प्रदर्शन को बर्दाश्त नहीं करेगा। दरअसल, चीन की नाराजगी अमेरिकी सिनेटर टॉम कॉटन के उस बयान से ज्यादा बढ़ गई है, जिसमें उन्होंने चीन को आगाह करते हुए कहा था कि प्रदर्शन को दबाने के लिए चीन जिस तरह से बल प्रयोग कर रहा है उसको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इतना ही नहीं टॉम ने अमेरिकी राष्ट्रपति से इस बात की भी गुाजारिश की है कि चीन पर प्रतिबंध लगाने चाहिए। कुछ दूसरे सिनेटर्स भी इस मुद्दे पर टॉम का साथ देते हुए दिखाई दे रहे हैं। चीन की नाराजगी की दूसरी वजह ये भी है कि टॉम का यह बयान उस वक्त आया जब पहले ही चीन ने इस प्रदर्शन को रोकने के लिए बल प्रयोग न करने का बयान दिया था।
यूएस सांसद के बयान से चिढ़ा चीन
चीन की तरफ से लगातार कहा जा रहा है कि वह किसी भी तरह के प्रदर्शन को बर्दाश्त नहीं करेगा। चीन की नाराजगी अमेरिकी सिनेटर टॉम कॉटन के उस बयान से ज्यादा बढ़ गई है, जिसमें उन्होंने चीन को आगाह करते हुए कहा था कि प्रदर्शन को दबाने के लिए चीन जिस तरह से बल प्रयोग कर रहा है उसको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इतना ही नहीं टॉम ने अमेरिकी राष्ट्रपति से इस बात की भी गुाजारिश की है कि चीन पर प्रतिबंध लगाने चाहिए। कुछ दूसरे सिनेटर्स भी इस मुद्दे पर टॉम का साथ देते हुए दिखाई दे रहे हैं। चीन की नाराजगी की दूसरी वजह ये भी है कि टॉम का यह बयान उस वक्त आया जब पहले ही चीन ने इस प्रदर्शन को रोकने के लिए बल प्रयोग न करने का बयान दिया था।
हांगकांग है एफडीआई का गढ़
यदि हांगकांग में कुछ भी गड़बड़ तो इसका सीधा असर एफडीआई पर पड़ेगा और यह प्रभावित होगा। आपको बता दें कि चीन में पोर्टफोलियों इंवेस्टमेंट नहीं है, लिहाजा एफडीआई पर ही इस देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। हांगकांग इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि लॉन्गटर्म इंवेस्टमेंट का 61 फीसद केवल यहीं से आता है। यहां पर एफडीआई के आने की वजह निवेश की लचीली और सरल प्रक्रिया भी है।
राधिका का कहना है कि जिस तरह से हांगकांग का मुद्दा गरमा रहा है वह चीन के लिए सही नहीं है। वैसे भी वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ रही है। अमेरिका के साथ जारी ट्रेड वार भी इसकी एक बड़ी वजह है। आपको बता दें कि अमेरिका ने चीन को करेंसी मेन्यूपुलेटर बताया है। चीन की बड़ी कंपनी अलीबाबा भी हांगकांग के शेयरबाजार में लिस्टेड है। लेकिन वहां के बदलते राजनीतिक और आर्थिक माहौल में यह भी प्रभावित हो सकता है।