प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन ने एक बार कहा था कि ईश्र्वर ने पहले मॉरीशस बनाया और फिर उसमें से स्वर्ग की रचना की। विमान मॉरीशस की जमीन को छुए उससे पहले ही आपको मार्क ट्वेन के इस बयान की हकीकत सामने आ जाती है कि क्यों उन्होंने यह बयान दिया होगा। हरे-भरे लैंडस्केप, गर्व से माथा उठाये खड़ी पहाडि़यां, पहाडि़यों के बीच की दरारों से टकराती हुई समुद्री लहरें, सफेद चमकते हुए बालू वाले तट और लहलहाते हुए नीले रंग के पानी का एक खूबसूरत कंट्रास्ट। समुद्र के किनारे खड़े होकर आप प्राकृतिक सौंदर्य की पराकाष्ठ के दर्शन कर सकते हैं।
बिहार-यूपी की झलक
एयरपोर्ट से पोर्ट लुई की तरफ जाते हुए भारत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरह दूर-दूर तक फैले हुए गन्ने के विस्तृत खेत, महाराष्ट्र के खेतों की तरह काली मिट्टी के खेत, कोंकण और केरल के बरसाती गांवों जैसे गांव के परिदृश्य, बिहार के आरा के किसी गांव की तरह भोजपुरी बोलते लोग। यह सब देखकर लग रहा था कि मानो इसीलिए मॉरीशस के बारे में कहा जाता है कि भारत से दूर एक और भारत है। लघु भारत, अपना भारत। जहां पंचवटी भी है और चित्रकूट भी, गंगासागर भी है और इन्हें मानने वाले खुशमिजाज लोग भी।
भारत के गिरमिटियों की कहानियां पढ़ते-सुनते यही पाया कि कभी भारत के अभावग्रस्त लोगों को बहकाया गया था कि चलो मॉरीशस.. ऐसा जादुई देश, जहां जिस भी पत्थर को पलटोगे, उसके नीचे सोना मिलेगा। भला ऐसा कहीं संभव है कि पत्थर के नीचे सोना छिपा हुआ हो, लेकिन इसे उनके कठिन परिश्रम का प्रतिफल ही कहेंगे कि जिस सपने को दिखाकर, ठगकर उन्हें यहां लाया गया, उन्होंने उसी सपने को साकार कर दिखाया। सबसे पहले तो उन्होंने आजादी की जंग छेड़ कर मॉरीशस को अपने नाम किया और फिर मॉरीशस को अपने खून-पसीने की कमाई से विश्र्व मानचित्र पर स्थापित कर दिया।
पोर्ट लुई शहर
हम पोर्ट लुई से आगे समुद्र तट पर बने एक रिसॉर्ट में रुके। दो मित्र साथ थे। रास्ते भर मॉरीशस के इतिहास, समाज, अर्थव्यवस्था पर बात होती रही, लेकिन मन बार-बार खिड़की के बाहर बरबस जा टिकता था। दूर पहाडि़यों से खेलते हुए बादल, साफ-सुथरी सड़कें, हरियाली। होटल खूबसूरत था, एक ड्रीम लैंड की तरह। जहां के एक छोर से आप अनंत को देख सकते हैं एक नीला अनंत, दूर कहीं जैसे क्षितिज और समंदर की किसी ने आपस में तुरप दिया हो, बस सूरज के आने-जाने को एक छोटी-सी पगडंडी छोड़ दी हो.. मैं सामने सूरज को समंदर में गिरते देख रहा हूं।
अप्रवासी घाट
अगली सुबह मॉरीशस घूमने निकले, तो सबसे पहले अप्रवासी घाट पहुंचे। सामने हैं अप्रवासी घाट की वे सीढि़यां, जिन पर चढ़कर एग्रीमेंट वाले वे मजदूर मॉरीशस की किस्मत बदलने के लिए उतरे थे। आज यूनेस्को ने उस स्थान को विश्र्व-धरोहर घोषित कर दिया है। अप्रवासी घाट देखते-देखते मन गर्व से भर गया। परिश्रम के दुखों और अभावों पर जीत का शायद ही इससे बेहतर उदाहरण आपको कहीं और देखने को मिले।
मैं यही सोच रहा था कि कैसे आए होंगे, कैसे उतरे होंगे, कैसे खुद को संभाला होगा, कैसे मन को मनाया होगा, कैसे धीर धरा होगा, कैसे साथियों को सहारा दिया होगा? जबरदस्ती, प्रलोभन और धोखे का प्रतिफल- एक निर्जन टापू। अपनी जमीन, अपने आसमान से इतना दूर, समंदर के बीच में उमड़ती-घुमड़ती भावनाओं का संदेशा अपनों तक भेजना हो, तो शायद यक्ष का बादल भी थक जाए। और फिर शुरू हुई होगी कहानी निर्माण की।
वे सीढि़यां अभी तक सलामत हैं, जिनसे वे पहली बार इस टापू पर चढ़े थे। सालों पहले भारत से लाए गए पूर्वजों की उस अथक मेहनत को प्रणाम है, जिन्होंने इस निर्जन टापू को इतना खूबसूरत बना दिया कि दुनिया के हर कोने से सैलानी यहां घूमते दिखते हैं। परिश्रम व अनुशासन यहां के नागरिकों को विरासत में मिला है। हमेशा मुस्कुराते रहने वाले मेहनतकश लोग। राष्ट्रीय गर्व ओर अस्मिता पर स्वाभिमान। भारत से जुड़े होने का गर्व भी और स्वायत्त तंत्र के निर्माण का स्वाभिमान भी।
भारतीयता की झलक
मॉरीशस के किसी गांव में आपको विशुद्ध भारतीय परिधान साड़ी पहनकर झूमर, सोहर, कजरी या रतवाई गाती हुई महिलाएं दिखें, तो आश्चर्यचकित मत होइए। मॉरीशस के एक प्रसिद्ध लेखक का मानना है कि ये महिलायें ही हैं, जिन्होंने हमारे संस्कारों, परंपराओं, भाषाओं और हमारे भीतर भारत को जिंदा रखा है। हर घर के बाहर तुलसी के चौरे पर जलने वाला दिया हमें हमारे अतीत से जोड़े रखता है।
महेश्र्वरनाथ मंदिर
मॉरीशस के उत्तरी भाग में स्थित महेश्र्वरनाथ मंदिर ‘ट्रायोलेट शिवाला’ के नाम से भी चर्चित है। वास्तव में यह मंदिर दो सदियों से मॉरीशस में हिंदू पहचान का प्रतीक है। पूर्वी मॉरीशस में एक मनोरम द्वीप पर अत्यंत दर्शनीय सागर शिव मंदिर है। चारों तरफ से आती समुद्री लहरों और समुद्री हवाओं के बीच फहराता हुआ सागर शिव मंदिर का ध्वज मानो उद्घोष करता है कि मॉरीशस में भारतीयता की कीर्ति पताका हमेशा ऊंची रहेगी। शाम को हम गंगा तालाब गए, जहां एक और दर्शनीय स्थल है। 108 फीट ऊंची शिव प्रतिमा, पवित्र ताल और ताल के चारों ओर विभिन्न देवी-देवताओं के स्थान। आध्यात्म और श्रद्धा का केंद्र, जहां आंखें मूंदकर बैठने का मन करता है। वातावरण ऐसा कि स्वयं प्रार्थना में हाथ जुड़ जाएं। सात रंगों की मिट्टी का वरदान भी ईश्र्वर ने मॉरीशस को ही दिया है, जिसे कई जगहों पर देखा जा सकता है।
रीशस का पूर्वी हिस्सा
मॉरीशस का पूर्वी हिस्सा अधिक हरा-भरा लेकिन अल्पविकसित है, जिसकी वजह से यहां पर आपको प्रकृति पूरे रंग में दिखती है। पालमार और बैलमार के सफेद समुद्र तट बहुत ही सुरम्य हैं। ग्रैंड ग्रेब्य और ग्रैंड बे इस ओर के प्रमुख बीच हैं। दक्षिण पूर्व अपने ऊंचे चट्टानों के लिए मशहूर है, जहां से द्वीप के दक्षिणी सिरे की ओर जाने पर आपको खूबसूरत नजारे दिखते हैं। पश्चिमी तट अद्भुत सूर्यास्त और गहरे जल में मछली पकड़ने के लिए प्रसिद्ध है।
सर्फरों को टेमेरिन जाना चाहिए, जो मॉरीशस का सर्फिंग सेंटर है। मॉरीशस यात्रा का एक विशेष अनुभव हुआ, जब हम ग्रिस ग्रिस नाम के एक खूबसूरत बीच पर पहुंचे। आमतौर पर मॉरीशस का समुद्र शांत है, नीला है, लेकिन ग्रिस-ग्रिस का समुद्र बहुत बेचैन, तेज और डरावना भी है। आमतौर पर समुद्र का रंग काला नहीं दिखता, पर यहां दिखता है। यह स्थान फिर भी मनोरम है, दर्शनीय भी। हम वापस लौट रहे हैं पर मन से मॉरीशस नहीं छूटता। आखों में नीला समंदर लिए हम वापस आ रहे हैं..उस भारत से दूर इस भारत।