1750 में इंग्लैंड की धरती में हैमल्डन क्लब में पहली बार क्रिकेट खेला गया था और 1975 में पहली बार यहीं पर इस खेल का विश्व कप खेला गया, लेकिन आज तक क्रिकेट का जनक एक बार भी विश्व विजेता ट्रॉफी को चूम नहीं पाया। 1979, 1987 और 1992 में टीम खिताब की दहलीज तक पहुंची, लेकिन वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान ने उसका यह सपना पूरा होने नहीं दिया। इंग्लैंड की टीम चौथी बार विश्व कप के फाइनल में पहुंची है और अपनी सरजमीं पर दुनिया के सबसे पुराने क्रिकेट स्टेडियम में उसके पास खिताब जीतने का यह सबसे बड़ा मौका है। केन विलियमसन की टीम दुनिया की नंबर वन टीम को ऐसा आसानी से नहीं करने देगी क्योंकि दूसरी बार फाइनल में पहुंची न्यूजीलैंड भी खिताब को पहली बार अपने नाम करने के लिए जी-जान लगा देगी।
पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने विश्व कप से पहले दैनिक जागरण से कहा था कि घरेलू टीम को अपनी सरजमीं पर थोड़ा फायदा होता ही है। कोई टूर्नामेंट भले ही आइसीसी के अंडर में हो रहा हो, लेकिन मैदानकर्मियों का झुकाव अपनी टीम की ओर होता ही है। पिछले चार बार इंग्लैंड अपनी सरजमीं पर यह खिताब नहीं जीत सका है, लेकिन इस बार उसकी टीम काफी मजबूत नजर आ रही है और ऐसे में उसको सबसे सशक्त दावेदार माना जा रहा है।
क्रिकेट में कुछ भी हो सकता है
विश्व कप के लीग मुकाबले खत्म होने के बाद सबसे ज्यादा जीत के साथ भारतीय टीम नंबर वन और ऑस्ट्रेलिया नंबर दो पर थी। इंग्लैंड सेमीफाइनल की दौड़ से बाहर होने की कगार पर पहुंचने के बाद आखिरी के करो या मरो के मुकाबले जीतकर सेमीफाइनल में पहुंची, जबकि न्यूजीलैंड रन रेट के आधार पर पाकिस्तान से आगे रहने के कारण आगे बढ़ी, लेकिन फाइनल की दौड़ से सबसे पहले वे दो टीमें बाहर हुईं जो अंक तालिका में शीर्ष दो स्थानों पर थीं और उन्होंने मिलकर सात बार विश्व खिताब जीता था।क्रिकेट में कुछ भी हो सकता है और इसी का उदाहरण है कि अंक तालिका में चौथे नंबर पर रही न्यूजीलैंड ने भारत और तीसरे नंबर पर रही इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर विश्व खिताब की तरफ आखिरी कदम बढ़ाया।
अब इन दोनों के बीच टक्कर है। जहां इंग्लैंड की बल्लेबाजी ही नहीं उसकी गेंदबाजी भी दमदार है तो वहीं न्यूजीलैंड की बल्लेबाजी कमजोर नजर आ रही है। न्यूजीलैंड ने अभी तक जो मैच जीते हैं उसमें सबसे ज्यादा विलियमसन की बल्लेबाजी और बोल्ट, फग्र्यूसन व हेनरी की गेंदबाजी का योगदान रहा है, जबकि इंग्लैंड की ओर से बेयरस्टो, रॉय, रूट, मोर्गन, आर्चर, वोक्स, स्टोक्स अहम योगदान दिया है।