मंगल, ऐसे देवता जो हर दम मंगल करते हैं, किसी भी अनिष्ट से श्रद्धालु को बचाते हैं जिनकी कृपा से विवाह, भूमि संबंधी कार्य, सैन्य कार्य आदि होते हैं। ऐसे भगवान मंगल का पूजन शुभकारक होता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मंगल देव की उत्पत्ति धरती से ही हुई है। इन्हें धरती पुत्र भी कहा जाता है।
इस संबंध में स्कंध पुराण के अवंतिखंड में भी वर्णन मिलता है। मूल रूप से मंगल की आराधना शिवस्वरूप में की जाती है। इस दौरान भगवान को भात पूजन, कुकुम, लाल पुष्प् के अभिषेक और जलाभिषेक से प्रसन्न किया जाता है। चूंकि मंगल अग्नितत्व प्रधान है। इसे लाल ग्रह भी कहते हैं इसलिए इसे शांत रखा जाता है। मंगल देव को प्रसन्न करने के लिए मंगलावार का व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने के लिए प्रातःकाल जल्द उठकर स्नान आदि से निवृत्त हुआ जाता है।
जिसके बाद कलश आदि विधिवत तरीके से स्थापित कर भगवान मंगल की आराधना की जाती है। यही नहीं भगवान का मंगल, भूमिपुत्र, ऋणहर्ता, धनप्रदा, स्थिरासन, महाकाय, अंगारक, भौम, यम, सर्वरोगहारक, वृष्टिकर्ता, पपहर्ता, सर्वकाम फलदाता आदि नामों से स्मरण किया जाता है। इस दौरान श्री मंगल यंत्र को कुमकुम और लाल पुष्प् आदि समर्पित किया जाता है।
इस दौरान कहा जाता है कि मंगल को प्रसन्न करने के लिए ऊं अंगारकाय नमः मंत्र का जाप भी अच्छा होता है। मंगलदेव के पूजन के साथ ही इस दिन किसी जरूरतमंद को लाल कपड़ा, वस्त्र दान किया जा सकता है साथ ही भात का दान भी अच्छा होता है। वैसे मंगलशांति के लिए भातपूजन एक अच्छा उपाया है। भातपूजन केवल मध्यप्रदेश के उज्जैन में ही करवाया जाता है। इसे करने के बाद मंगलदेव प्रसन्न होते हैं।