अगर आप दिल्ली घूमने का प्लान बना रहे हैं और आपके पास सिर्फ दो दिन हैं तो हम आपको बता रहे हैं कि कहां-कहां घूमें? दिल्ली का दिल पुरानी दिल्ली और भव्यता नई दिल्ली में बसती है। दिल्ली में देखने के लिए सिर्फ बाजार ही नहीं हैं बल्कि कई ऐतिहासिक जगहें भी हैं। दिल्ली अपने आप में कई संस्कृतियों का मेल-जोल है। यहां आपको एक नहीं बल्कि हजार रंग दिखेंगे।
आप दिल्ली आ रहे हैं तो सबसे पहले अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट जरूर जाएं। यहां आपको सुकूं और शांति मिलेगी। राजघाट, यमुना नदी के किनारे बसा है। राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि पर उनके वचनों को लिखा गया है। यहां गांधी जी के आखिरी शब्द “हे राम” काले संगमरमर पत्थर पर अंकित हैं। यहां एक ज्योति हमेशा स्मारक के एक कोने में जलती रहती है।
विदेशों से आने वाले पर्यटक, राजनेता एवं डेलिगेट गांधी समाधि पर फूल मालाएं चढ़ाने जाते हैं। राजघाट पर हर शुक्रवार को गांधी जी की याद में प्रार्थना का आयोजन किया जाता है। राजघाट में आप गणमान्य व्यक्तियों के नामों के कई पेड़ों के देख सकते हैं। राजघाट सुबह 9 बजे खुल जाता है और बंद शाम छह बजे होता है।
जामा मस्जिद
जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने करवाया था। मस्जिद 1656 में बनी थी। जामा मस्जिद को लाल और संगमरमर के पत्थरों से बनाया गया है। कहा जाता है कि जामा मस्जिद के निर्माण में उस वक्त 10 लाख रुपए का खर्च आया था और यह मस्जिद 6 साल में बनकर पूरी हुई थी।
जामा मस्जिद का पूर्वी द्वार सिर्फ शुक्रवार को खुलता है। आप यहां उत्तर और दक्षिण द्वार से प्रवेश कर सकते हैं। जामा मस्जिद में 11 मेहराब हैं और बीच वाला मेहराब सबसे बड़ा है। मस्जिद सुबह ही खुल जाती है। आप अगर जामा मस्जिद घूमने जा रहे हैं तो सुबह चले जाएं ताकि भीड़-भाड़ से आपका सामना न हो। यहां जाने के लिए सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन चावड़ी बाजार है।
कुतब मीनार
कुतब मीनार दिल्ली की ऐतिहासिक इमारत है। यह महरौली में स्थित है। कुतुब मीनार को देखने के लिए भारत के कोने-कोने से पर्यटक आते हैं। यह ईटों से बनी दुनिया की सबसे ऊंची मीनार है। दिल्ली टूरिज्म की वेबसाइट के मुताबिक, दिल्ली के अंतिम हिन्दू शासक की पराजय के फौरन बाद 1193 में कुतुबुद्धीन ऐबक द्वारा इसे 73 मीटर ऊंची विजय मीनार के रूप में निर्मित कराया गया।
इस इमारत की पांच मंजिलें हैं। प्रत्येक मंजिल में एक बालकनी है। पहली तीन मंजिलें लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और चौथी तथा पांचवीं मंजिलें मार्बल और बलुआ पत्थरों से निर्मित हैं। कुतुबमीनार का निर्माण विवादपूर्ण है कुछ मानते है कि इसे विजय की मीनार के रूप में भारत में मुस्लिम शासन की शुरूआत के रूप में देखा जाता है। कुछ मानते है कि इसका निर्माण मुअज्जिन के लिए अजान देने के लिए किया गया है। यह मीनार भारत में ही नहीं बल्कि विश्व की बेहतरीन स्मारक है। दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्धीन ऐबक ने 1200 ई. में इसके निर्माण कार्य शुरु कराया किन्तु वे केवल इसका आधार ही पूरा कर पाए थे। इनके उत्तराधिकारी अल्तमश ने इसकी तीन मंजिलें बनाई और 1368 में फिरोजशाह तुगलक ने पांचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई थी।
ऐबक से तुगलक काल तक की वास्तुकला शैली का विकास इस मीनार में स्पष्ट झलकता है। प्रयोग की गई निर्माण सामग्री और अनुरक्षण सामग्री में भी विभेद है । 238 फीट कुतुबमीनार का आधार 17 फीट और इसका शीर्ष 9 फीट का है । मीनार को शिलालेख से सजाया गया है और इसकी चार बालकनी हैं।