जी हां, सारी दुनिया का बोझ जो उठाते हैं, बैजनाथ हलवाई के ये बड़े लड्डू उनकी भूख मिटाते हैं। ग्वालियर में रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 4 के बाहर मिलते हैं बैजू दादा के स्पेशल लड्डू। दो सौ से ढाई सौ ग्राम का एक लड्डू अच्छे खासे पेटू की भूख को भी चित कर सकता है। समय के साथ बहुत कुछ बदला, पर 80 साल बाद भी नहीं बदला तो इन लड्डुओं का आकार। ये अब भी बन और बिक रहे हैं।
बैजनाथ हलवाई तो अब इस दुनिया में रहे नहीं, पर बड़े लड्डू बनाने की शुरुआत करने वाले बैजू दादा की दास्तां बड़ी खास है। यही कोई दो वर्ष पूर्व उनका परलोक गमन हो गया, लेकिन उनकी इस परंपरा को उनके बेटे मुकेश शिवहरे ने कायम रखा है। प्लेटफार्म नंबर चार के बाहर नजारा पहले से काफी बदल चुका है, लेकिन बैजू हलवाई की दुकान का स्वरूप नहीं बदला। मुकेश के अनुसार उनके पिता बैजनाथ लगभग 80 साल पहले रेलवे स्टेशन पर रेहड़ी लगाकर छोटे लड्डू बेचा करते थे।
उस समय यहां मालगाड़ी से माल उतारने वाले हम्मालों की भीड़ डटी रहती थी। हम्माल, कुली और गाड़ीवान (बैलगाड़ी वाले) ऐसा सुलभ और स्वादिष्ट खाद्य चाहते थे, जिसे काम के बीच झट-पट खाया जा सके और भूख मिटाई जा सके। छोटे-छोटे लड्डुओं को लेकर जाना और संभालना कुलियों, हम्मालों के लिए एक झंझट था। पिताजी ने उनकी जरूरत के अनुसार बड़े आकार का (250 ग्राम वजनी) लड्डू बनाना शुरू किया। बात बन गई। हम्माल-गाड़ीवान सामान को बैलगाड़ी में रखते हुए या बैलगाड़ी हांकते हुए लड्डू खा लेते।
बैजनाथ हलवाई ने जब इन बड़े लड्डुओं की शुरुआत की थी, तब डालडा या वनस्पति तेल का प्रचलन ही नहीं था, लिहाजा देसी घी से वे इन्हें बनाते थे। वैसे भी मेहनत करने वालों की पसंद देसी घी ही हुआ करता था। बाद में बैजू ने प्लेटफार्म नंबर 4 के बाहर दुकान खोल ली, जो अब भी चल रही है। मुकेश बताते हैं कि समय के साथ आंशिक बदलाव करना पड़ा है।
अब वनस्पति तेल (डालडा) से बना बड़ा लड्डू 40 रुपए में और देशी घी में बना 100 ग्राम का लड्डू 40 रुपए में बिकता है। 50 वर्षीय मुकेश के अनुसार वह 10-12 साल के थे, तब से दुकान पर आ जाते थे। उस समय 25 पैसे में लड्डू बिका करता था। अब समय के साथ इसकी कीमत बढ़ गई, लेकिन गुणवत्ता और स्वाद का पूरा ध्यान रखा है।
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