श्रीलंका की मुख्य राजनीतिक पार्टियों ने सोमवार को राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना की ओर से संसद भंग किए जाने को चुनौती देने के लिए सोमवार को देश की शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर की और कोर्ट से विधायिका को बहाल करने को कहा.
संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त तीन पार्टियों के समूह ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा है कि वह प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को पद से हटाने के सिरीसेना के 26 अक्टूबर के फैसले को अवैध करार दे. सिरीसेना की ओर से विक्रमसिंघे की जगह पूर्व राजनीतिक दिग्गज महिंदा राजपक्षे को नियुक्त किए जाने के बाद से श्रीलंका संवैधानिक संकट से घिरा हुआ है.
इससे पहले ‘इंडिया टु़डे’ से खास बातचीत में श्रीलंका के अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने संसद भंग किए जाने को संविधान की अवहेलना और 19वें संशोधन का उल्लंघन करार दिया. हालांकि विक्रमसिंघे ने जनता और लोकतंत्र पर विश्वास जताते हुए फिर से जनादेश लेने की बात कही है. श्रीलंकाई संसद भंग किए जाने के बाद शनिवार की सुबह वहां के अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कोर ग्रुप से मीटिंग के बाद इंडिया टुडे से अपने सरकारी आवास टेंपल ट्री में बातचीत की.
अपनी पार्टी, यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) की सीरीसेना-राजपक्षे गठजोड़ से हर मोर्चे पर लड़ने की तैयारी की बात करते हुए विक्रमसिंघे ने कहा कि जनवरी 2019 में होने वाले आम चुनाव के लिए कोई भी तैयार नहीं है. उन्होंने कहा, “हमने कोर ग्रुप से चुनाव की तैयारियों को लेकर मुलाकात की है. चुनाव आयोग कुछ क्षेत्रों में प्रोविजनल चुनाव की तैयारियां कर रही है. उनकी पार्टी राष्ट्रीय चुनाव के लिए तैयार नहीं है, कोई भी तैयार नहीं है. इसलिए यह स्थिति दिलचस्प होने वाली है.”
बर्खास्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसंघे की पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के पास 106 सीटें हैं और बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करने के लिए उन्हें सिर्फ सात सीटें कम पड़ रही हैं. यूएनपी ने दावा किया है कि राष्ट्रपति ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि 72 वर्षीय राजपक्षे के पास सदन में बहुमत नहीं है.