1920 में अस्तित्व में आए अकाली दल में ग्रामीण और धार्मिक पृष्ठभूमि के नेता मुख्य तौर पर बड़े पदों पर रहे हैं। जिला गुरदासपुर और माझा में जमीन से जुड़े नेता उजागर सिंह सेखवां भी अकाली दल में ऐसा ही नाम थे। उनकी राजनीतिक विरासत को 1990 के बाद उनके बेटे सेवा सिंह सेखवां ने संभाला।
उस समय शिरोमणि अकाली दल और बादल परिवार का राजनीतिक आधार खत्म होने की कगार पर था। 1992 से 1997 तक पंजाब में बेअंत सिंह की सरकार थी। इस समय में सेवा सिंह सेखवां ने प्रकाश सिंह बादल और शिरोमणि अकाली दल के बीच बड़ा राजनीतिक आधार कायम कर लिया। 1997 में बादल की अगुवाई में अकाली दल की सरकार बनी। सेखवां भी चुनाव जीते और उन्हें बाल व पुनर्वास मंत्री बनाया गया।
2007 के चुनाव में सेखवां प्रताप सिंह बाजवा से चुनाव हार गए, लेकिन फिर भी बादल ने हलका काहनूवान और कादियां ही नहीं, बल्कि सेखवां का रुतबा जिला गुरदासपुर में बहाल रखा। उन्हें और पत्नी को शिरोमणि कमेटी का सदस्य बनाया। 2009 में प्रताप सिंह बाजवा के सांसद बनने के बाद हुए काहनूवान के उपचुनाव में सेखवां फिर विधायक बने। बादल ने उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया। 2010 में सेखवां के बेटे जगरूप सिंह को मार्केट कमेटी काहनूवान का चेयरमैन बनाया गया। 2012 के विधानसभा चुनाव में सेखवां फिर हार गए। इसके बाद उन्हें तकनीकी शिक्षा बोर्ड का चेयरमैन बनाकर कैबिनेट रैंक दिया गया।
2012 के बाद सेखवां और बादल परिवार में दूरी बढ़नी शुरू हो गई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल की हार हुई। शिअद कोर कमेटी की बैठक में सेखवां ने हार के लिए शिअद प्रधान सुखबीर बादल को जिम्मेदार बताया। शिअद के पंथक मुद्दों से दूर होने का ठीकरा भी उनके सिर पर फोड़ा था। यहां से सुखबीर और सेखवां के बीच टकराव शुरू हो गया। सुखबीर ने भी कादियां में दूसरी कतार के नेताओं को ऊपर उठाना शुरू कर दिया जिससे ये दूरी बढ़ती गई।