यह बात तार्किक है कि यदि भारत की सामरिक ताकत बढ़ेगी तो चीन और पाक तो बेचैन होंगे, पर अमेरिका भी बेचैन हो जाय ऐसा कम ही रहा है। अरबों डॉलर के रक्षा सौदे को लेकर भारत और रूस इन दिनों फलक पर हैं जबकि अमेरिका के साथ चीन और पाकिस्तान की बौखलाहट साफ देखी जा सकती है। भारत अमेरिकी प्रतिबंधों का जोखिम उठाते हुए एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम रूस से खरीद रहा है जिसे लेकर भारत को करीब पांच अरब डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। रूस से खरीदे जाने वाले इस डिफेंस सिस्टम को लेकर अमेरिका क्यों चिढ़ा है और भारत पर प्रतिबंध की तलवार क्यों लटक रही है इसे भी समझा जाना जरूरी है। अमेरिका ने अपने
अमेरिका के शत्रु देशों में शुमार है रूस
शत्रु देशों को प्रतिबंधों के जरिये दंडित करने के लिए एक कानून काउंटरिंग अमेरिकन एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट बनाया है जिसे संक्षिप्त में काटसा कहा जाता है इन देशों के साथ अर्थात अमेरिका के घोषित शत्रु देशों के साथ यदि कोई सौदा करता है तो उस पर यह कानून लागू होता है। रूस चूंकि अमेरिका के शत्रु देशों में शुमार है लिहाजा भारत को इसकी चिंता कुछ हद तक सता रही थी पर भारत ने यह तय कर लिया है कि भले ही अमेरिका आंखे दिखाए पर यह समझौता उसकी अपनी रक्षा के लिए जरूरी है। हालांकि भारत रूस से एस-400 खरीद के मामले में काटसा कानून से रियायत चाहता था जिसे अमेरिका खारिज कर चुका है। जाहिर है भारत को अपनी रक्षा सोचनी है ऐसे में अमेरिका को लेकर आखिर फिक्र क्यों?
एस-400 सिस्टम अधिक जरूरी
चीन और पाकिस्तान के संभावित खतरे को देखते हुए एस-400 सिस्टम कहीं अधिक जरूरी है। सामरिक दृष्टि से भी भारत को ताकतवर होना समय की मांग है ऐसे में दुनिया का कोई देश धौंस नहीं दिखा सकता। इसमें कोई दुविधा नहीं कि फ्रांस से खरीदे जा रहे 36 राफेल फाइटर विमान और रूस से एस-400 को लेकर हुए ताजा समझौते से देश की सैन्य क्षमता मजबूत होगी। बीते कई सालों से अमेरिका कई देशों को रूस और ईरान के साथ समझौता करने पर प्रतिबंधों और तमाम तरह की धमकियां देता रहा। इन सबके बीच पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एस-400 डील पर मोहर लगाकर अमेरिका समेत दुनिया को यह संकेत दे दिया कि वह अमेरिका पर निर्भर जरूर है परंतु रणनीतिक तौर पर वह पूरी तरह स्वतंत्र है।
भारत को दबाव में लेने की कोशिश
हालांकि इसके बाद अमेरिका भी कुछ नरम पड़ा है। उसने कहा कि प्रतिबंध वास्तव में रूस को दंडित करने के लिए हैं। तो क्या यह मान लिया जाय कि अमेरिका ने जिस तर्ज पर काटसा कानून के सहारे इस रक्षा सौदे को लेकर भारत को दबाव में लेने की कोशिश कर रहा था उससे अब वह पीछे हट गया है। हालांकि रूस से रक्षा सौदे पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि भारत को जल्द मेरे फैसले की जानकारी होगी। भारत के सामने एक तो रूस से हुए रक्षा समझौतों तो लेकर अमेरिका से मिलने वाली चुनौती, दूसरे नवंबर से ईरान से तेल न लेने की चुनौती कहीं अधिक अहम है। देखा जाय तो चीन से अमेरिका की निरंतर मतभेद चलते रहते है।
ट्रेड वॉर और आर्थिक प्रतिबंध
इन दिनों तो दोनों के बीच ट्रेड वॉर भी चल रहा है जबकि पाकिस्तान पर वह कई आर्थिक प्रतिबंध पहले लगा चुका है और वहां के भीतर पनपे आतंकवाद को लेकर उसे बर्बाद करने तक की धमकी दे चुका है। ऐसे में यदि भारत पर भी वह नजर टेढ़ी करता है तो उसी का नुकसान होगा। अमेरिका को भी मालूम है कि चीन को संतुलित करने के लिए भारत से द्विपक्षीय संबंध मधुर रखने होंगे और पाकिस्तान को कहीं से बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। चीन ऐसा पहला देश है जिसने गवर्मेट टू गवर्मेट डील के तहत 2014 में रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम को खरीदा था और रूस इसकी आपूर्ति भी कर चुका है पर संख्या स्पष्ट नहीं है।
कतर को मिसाइल सिस्टम बेच सकता है भारत  
हालांकि भारत के अलावा रूस कतर को भी यह मिसाइल सिस्टम बेचने की बात कर रहा है। पड़ोसियों की ताकत को कमजोर करने के लिए भारत को यह कदम उठाना ही था। चीन से भारत की चार हजार किमी की सीमा लगती है। वायु रक्षा प्रणाली मजबूत करने के लिए एस-400 कहीं अधिक जरूरी है। इस सुरक्षा प्रणाली की मदद से तिब्बत में होने वाली चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर रखने में आसानी होगी और हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी कम करने में यह मददगार होगा। चीन पिछले साल जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा बनाया। वहीं भारत ने इंडोनेशिया, ईरान, ओमान और सेशेल्स में नौसैनिक सुविधाओं तक पहुंच बना ली है। एस-400 भारत के लिए बहुत अहम होने वाला है।
सीरिया बॉर्डर पर एस-400 तैनात 
इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सीरिया युद्ध के दौरान तुर्की के लड़ाकू विमानों ने वहां तैनात रूस के फाइटर जैट एसयू-24 को भी मार गिराया था। स्थिति को देखते हुए रूस ने सीरिया बॉर्डर पर एस-400 तैनात किया इसके बाद ही नाटो समर्थित तुर्की के लड़ाकू विमान सीरिया के हवाई सीमा से मीलों दूर चले गये। एस-400 की मारक क्षमता के दायरे में पूरा पाकिस्तान आएगा। फिलहाल एस-400 को लेकर अमेरिका कितना परेशान है और आगे क्या सोचता है इसका फैसला उसी को लेना है। मगर पड़ोसी चीन और पाकिस्तान पर नजर गड़ाई जाय तो यहां का सूरत-ए-हाल कुछ और दिखेगा। दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार एस-400 खरीदने का सौदा करके भारत ने दोनों पड़ोसियों की फिलहाल नींद तो उड़ा दी है।
पाकिस्तान बहुत परेशान
इस डील से पाकिस्तान बहुत परेशान है और सूचना यह है कि वह चीन से 48 ड्रोन खरीद रहा है। यह उसकी बौखलाहट ही कही जाएगी कि आर्थिक रूप से अपाहिज हो चुका पाकिस्तान एस-400 के मुकाबले ड्रोन से भड़ास निकाल रहा है वह भी जिससे आर्थिक गुलामी झेल रहा है। गौरतलब है कि चीन से पाकिस्तान अरबों के कर्ज में डूबा है और उसकी माली हालत बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। सेना और आतंक पर पैसा लुटाने वाला पाक अब चीन के गुलामी के कगार पर है। कळ्ल धन का 40 फीसद यहां सेना और आतंकवादियों पर लुटाया जाता है जबकि यहां कि आम जनता बेरोजगारी, बीमारी और बदहाली से दो-चार हो रही है। सेना की बैसाखी वाली नई इमरान खान सरकार आर्थिक दुविधा को समझते हुए कुछ सोच तो रही है, पर भारत से तुलना करने में ये भी बाज नहीं आ रहे हैं। भारत और रूस के बीच हुए एस-400 को लेकर अमेरिका के लिए भी संदेश छुपा है और पड़ोसी चीन और पाकिस्तान के लिए भी। ऐसे में परिपक्वता दिखाने का जिम्मा इन्हीं पर है।
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