आजादी खुशी और उत्साह का प्रतीक है। आजादी में मन मसोसकर रहने की जरूरत नहीं होती लेकिन आम आदमी के लिए इसके मायने इतने सरल नहीं हैं। सरकारी कार्यालयों के कामकाज का तरीका आज भी आजादी के अधूरेपन को दिखाता है।
अजीब जुमले, बहाने और टालने के अनूठे तरीके ज्यादातर यहीं देखने को मिलते हैं। देश के स्वाधीनता दिवस की 70वीं वर्षगांठ के मौके पर नईदुनिया ने मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से 10 ऐसी आंखों देखी कहानियां चुनीं जो बताएंगी कि हमारी आजादी कितनी अधूरी है।
तमाम कोशिशों के बाद राशन कार्ड, जन्मप्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज बनवाना कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। आम आदमी की आंखोंदेखी यही कह रही है कि काम न करने की बीमारी से हमें आजादी चाहिए। नईदुनिया ने कई हफ्ते पहले प्रदेश में दो दर्जन से ज्यादा सरकारी दफ्तरों में काम करवाने पहुंचे आम आदमी को मुख्य किरदार के रूप में चुना।
उनके काम के लिए आवेदन देने और काम होने या रुक जाने की हर प्रक्रिया को देखा। वे कब, कितनी बार, किस सरकारी कर्मचारी-अफसर से मिले। उन्हें क्या जवाब मिला। उनका बर्ताव कैसा रहा। उन्हें टालने, टरकाने के हर तरीके को आम आदमी की नजर से देखा।
हर कहानी बताएगी कि बाबुओं और अफसरों में संवेदनशीलता की कितनी दरकार है। कहानी जीवंत तरीके से लिखी गई है, ताकि पाठक खुद को वहां महसूस कर सकें। हां, कहीं-कहीं उम्मीद का उजाला भी दिखा है लेकिन वह लापरवाही के अंधेरे को चीरने में कामयाब नहीं है।
अधूरी आजादी की पहली कहानी
बीपीएल राशन कार्ड की राह में रोड़ा बना बाबू हमारी पहली आंखों देखी के मुख्य किरदार हैं नरसिंहपुर के सुभाष वार्ड निवासी कमलेश बैरागी। एक होटल में दिहाड़ी मजदूर जैसे हैं। जिस दिन काम मिलता है, उस दिन 180 रु. मिल जाते हैं। वे सस्ता राशन पाने के लिए बीपीएल राशन कार्ड बनवाना चाहते हैं। पहले नगरपालिका पहुंचते हैं।
वहां से लोक सेवा केंद्र जाने की सलाह मिलती है। इसी बीच वे वार्ड पार्षद भोला ठाकुर से भी मिल लेते हैं। भोला उन्हें फोटो व आवेदन के लिए रुपए देकर मदद करते हैं। कमलेश फॉर्म जमा करते हैं लेकिन रसीद लंच के बाद देने के लिए कहा जाता है। इस बीच देर होने के बाद वे होटल पहुंचते हैं तो पता चलता है कि आज उनकी छुट्टी हो गई यानी दिहाड़ी मारी गई।
कुछ दिन बाद कमलेश पार्षद भोला ठाकुर के साथ एसडीएम से मिलते हैं और राशन कार्ड बनवाने का निवेदन करते हैं। एसडीएम मैडम सोनी बाबू से मिलने की सलाह देती हैं। दोनों आवेदन के साथ एसडीएम ऑफिस के बाबू अरुण सोनी से मिलते हैं। बाबू कमलेश की आय के बारे में पूछते हैं। कमलेश बताते हैं कि उन्हें जिस दिन काम मिलता है, उस दिन 180 रु. मिलते हैं।
सोनी कहते हैं कि होटल मालिक से लिखवाकर लाओ कि आय अनियमित है। कमलेश कहते हैं कि होटल मालिक क्यों लिखकर देगा। सोनी टका सा जवाब देते हैं- 180 रु. की प्रतिदिन आय बहुत है। कार्ड नहीं बन पाएगा। समय खराब मत करो। हालांकि उन्हें पारिवारिक स्थिति की जांच के लिए यह प्रकरण नगरपालिका भेजना था, लेकिन सोनी ने अपने स्तर पर ही इसे खारिज कर दिया और हफ्तों की कवायद और पार्षद की मदद के बाद भी कार्ड नहीं बना
साभार: नईदुनिया
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