फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की का पारिवारिक जीवन बहुत दुखद था। जब वे मात्र तेरह साल के थे तो उनकी मां की मृत्यु हो गई। अठारह साल की आयु में उनके नौकरों ने उनके पिता की हत्या कर दी। फिर बाद में दोस्तोयेव्स्की को मिरगी के दौरे भी पड़ने लगे। एक दिन उन्होंने एक दौरे में अपनी दाईं आंख फोड़ ली। उनके सामने न परिवार था और न ही कोई प्रेरणा। कुछ समय बाद उन्हें मिलिट्री इंजीनियर की नौकरी मिली, लेकिन उन्हें बार-बार लगता कि उनकी मंजिल कुछ और ही है।
उन्हें लिखने का बड़ा शौक था। नौकरी के कारण उन्हें अपना यह शौक पूरा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता था। उन्होंने नौकरी छोड़कर लिखने का मन बनाया। उनका पहला उपन्यास ‘पुअर फोक’ बहुत लोकप्रिय हुआ। लेकिन कुछ समय बाद ही उन पर क्रांतिकारी षड्यंत्र रचने का आरोप लगाकर उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। मृत्युदंड देने से कुछ मिनट पहले उनकी सजा को बदल दिया गया और उन्हें वहां से साइबेरिया जाने की सजा दी गई। दस साल बाद लेनिनग्राद लौटकर दोस्तोयेव्स्की ने फिर से लिखना शुरू किया।
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खराब स्वास्थ्य, गरीबी और कष्टों से भरे जीवन के बाद भी उन्होंने अमर ग्रंथ लिखे। जेल के अपने जीवन में उन्होंने कैदियों को बहुत करीब से देखा था, जिसका अमिट वर्णन उनके अमर ग्रंथ ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ में मिलता है। मनोवैज्ञानिक उपन्यास के जनक दोस्तोयेव्स्की अपने पाठकों के हृदय को छूने में सफल इसलिए रहे क्योंकि उन्होंने जिन अधिकांश कष्टों को अपने जीवन में भोगा था, उन्हीं को लेखन में उतारा था। उन्होंने अपने लेखन से पूरे विश्व के समक्ष इस बात को साबित कर दिया था कि यदि व्यक्ति चाहे तो कष्ट और संघर्ष से लड़कर न सिर्फ अपने लिए एक खास जगह बना सकता है बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणास्रोत भी बन सकता है।
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