महाभारत का युद्ध एक विनाशकारी युद्ध था जिसमे कई वंश समाप्त हो गए थे और इसी युद्ध के कारण ही भगवान् कृष्ण के यदुवंध का भी नाश हुआ था आप सोच रहे होंगें की महाभारत युद्ध में तो भगवान् कृष्ण जीवित थे फिर उनके वंश का नाश कैसे हुआ आइये जानते है?
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद हस्तिनापुर में जब युधिष्ठिर का राज्याभिषेक किया जा रहा था तब अपने सौ पुत्रों के मृत्यु से दुखी होकर गांधारी उस राज्याभिषेक में पहुंची और विलाप करते हुए सभी को कटु वचन कहने लगी तथा जब उनकी दृष्टि वहां उपस्थित भगवान् कृष्ण पर पड़ी तो उन्होंने भगवान् कृष्ण को इस युद्ध का उत्तरदायी मानते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार तुम्हारे कारण मेरे समस्त पुत्रों की मृत्यु हुई है उसी प्रकार तुम्हारे समस्त यदुवंश का नाश हो जाएगा.
एक दिन भगवान् कृष्ण के परममित्र सात्यकि व कृतवर्मा ने महाभारत के युद्ध कि किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया जिसके कारण दोनों आपस में युद्ध करने लगे और सात्यकि ने अपनी तलवार से कृतवर्मा का शीश काट दिया जिसकी वजह से यदुवंश में युद्ध छिड़ गया जिसमे भगवान् कृष्ण के पुत्र प्रदुयंम की भी मृत्यु हो गई. इस विनाश को देखकर बलराम जी ने भी समुद्र में जाकर समाधि लेकर अपने प्राणों का अंत कर दिया. अंत में भगवान कृष्ण और उनके सारथि दारुक व बब्रू ही शेष बचे.
इसी बीच एक दिन भगवान् कृष्ण वन में भ्रमण करते हुए एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए लेट गए तभी एक बहेलिया जो पूर्वजन्म में वानर राज बाली था जिसे भगवान् राम ने वरदान दिया था कि जिस प्रकार मैंने तुम्हारा वध किया है उसी प्रकार अगले जन्म में तुम भी मेरी मृत्यु का कारण बनोगे. इसी कारण से उस बहेलिये को दूर से भगवान कृष्ण के पैर किसी मृग के मुख के समान दिखाई दिए और उस बहेलिये ने अपने तीर से उस मृग पर निशाना साध अपना तीर छोड़ दिया जो सीधा जाकर भगवान् कृष्ण को लगा.
जब उस बहेलिये ने वहां जाकर देखा तो उसका तीर एक इंसान को लगा था उसने अपनी गलती के लिए भगवान् कृष्ण से क्षमा मांगी. तब भगवान कृष्ण ने उसे उसके पिछले जन्म की बातें बताई और अपने वरदान को पूर्ण किया. तथा अपने सारथि दारुक को बुलाकर कहा की सभी द्वारका वासियों से कहदो की मेरी मृत्यु निकट है और मेरी मृत्यु के बाद समस्त द्वारका नगरी जल में विलीन हो जायेगी इसलिए सभी इस स्थान को छोड़कर चले जायें.
जब दारुक भगवान कृष्ण की बात को द्वारका के वाशियों को बताने गए तभी वहां देवी देवता ने आकर भगवान कृष्ण की स्तुति की और भगवान कृष्ण ने अपनेको त्याग बैकुंठ धाम प्रस्थान किया. उनकी मृत्यु के बाद अर्जुन ने उनके सभी परिजनों का पिंडदान किया.