लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच का चुनाव आयोग ने भी समर्थन किया है. हालांकि, चुनाव आयोग ने बताया है कि इसके लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे. इनमें लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल और उनको भंग करने से जुड़े प्रावधान शामिल हैं.इस बारे में चुनाव आयोग से राय हासिल करने के बाद कानून मंत्रालय ने एक आंतरिक नोट में अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया है कि एक साथ चुनाव कराने के मामले में क्या संवैधानिक चुनौतियां आ सकती हैं.
गौरतलब है कि बीजेपी देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की वकालत कर रही है. खुद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पीएम मोदी इसकी बात कर चुके हैं. चुनाव आयोग ने इस तरह की पहल का समर्थन तो किया है, लेकिन उसकी तरफ से जो सलाह दी गई है उसके मुताबिक यह इतना आसान नहीं है.
कानून मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, इसके लिए संविधान में कई संशोधन करने होंगे. संसद के कार्यकाल से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 83 में संशोधन करना होगा. राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा भंग करने के नियमों से जुड़े अनुच्छेद 85 में भी संशोधन करना होगा. इनके अलावा राज्यों की विधानसभा के कार्यकाल और विधानसभाओं को भंग करने से जुड़े अनुच्छेद 172 और 174 में भी बदलाव करना होगा. इसी तरह राज्यों की सरकार को बर्खास्त करने से जुड़े अनुच्छेद 356 में भी बदलाव करना होगा.
सभी राजनीतिक दलों को मनाना होगा
यही नहीं, इसके लिए सभी राज्यों और राजनीतिक दलों से व्यापक सहमति की जरूरत भी होगी. कानून मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, ‘हमारे शासन के संघीय ढांचे के प्रति सम्मान बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि सभी राज्य सरकारों की सहमति हासिल की जाए.’ गौरतलब है इन बदलावों के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत है, इसलिए सरकार के लिए सभी राजनीतिक दलों की सहमति लेनी जरूरी है.
चुनाव आयोग का 2,000 करोड़ का खर्च बढ़ेगा
यही नहीं, चुनावी कैलेंडर में इस तरह के बदलाव के लिए चुनाव आयोग को अतिरिक्त ईवीएम/वीवीपैट खरीदने की जरूरत होगी, जिसके लिए कम से कम 2,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. ऐसी मशीन की लाइफ केवल 15 साल होती है, ऐसे में इन मशीनों का इस्तेमाल सिर्फ 3 बार हो पाएगा और हर 15 साल बाद इन्हें बदलने के लिए भारी खर्च करना पड़ेगा.