विज्ञान को अध्यात्म से जोड़कर देखने वाले इस जमाने को सूक्ष्म जगत की यात्रा का युग कहते हैं। ऐसा युग, जिसमें बाहर की चकाचौंध वाली कामयाबियों से ज्यादा, अपने भीतर की यात्रा और वहां के चमत्कारों को देखकर दांतों तले उंगली दबा लेनी पड़ती है। ‘डीएनए’ के जाने-माने विज्ञानी ब्रूस लिप्टन के अनुसार, यह दौर ‘आनुवंशिकी’ का है।
सन 1953 में ‘डीएनए’ की खोज के बाद साबित होता रहा है कि हमारी दस में से नौ बीमारियों की वजह तनाव है। शरीर अपने आपमें इतनी सक्षम संरचना है कि तमाम रोग-बीमारियों से निपट ले, लेकिन तनाव के कारण उसकी रोगों से लड़ने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
आध्यात्मिक पदों से विज्ञान की स्थापना करने के लिए असम के मशहूर कामाख्या तंत्र विज्ञानी, पं.गोविंद शास्त्री का कहना है कि मजबूरी और तनाव का खास कारण माता-पिता से मिले आनुवंशिकी तत्वों पर निर्भर है। आनुवंशिक तत्व एकदम किस्मत या भाग्य की तरह काम करते हैं। अपने जीन चुनना असंभव है, दूसरा कोई यह तय नहीं कर सकता कि उसके माता-पिता कौन होंगे? अर्थात आपका भविष्य पहले से तय है, उस पर अपना कोई वश नहीं है। बीमारियां इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
कैंसर या मधुमेह या हृदय-रोग जैसी कई विषम बीमारियां एक परिवार के लोगों को होती रहती हैं। मानसिक विषाद और ‘अल्जाइमर’ जैसी प्रवृत्तियां भी एक पीढ़ी से दूसरी को ‘जीन’ के साथ मिलती हैं। जिन लोगों के परिवार में ऐसे रोग पाए गए हैं, वे मानते हैं कि उन्हें भी आगे चलकर ऐसे रोग पकड़ेंगे ही।