मद्रास हाई कोर्ट की बेंच ने शनिवार को एक फैसले में कहा कि बैंक के कई बार ताकीद कराने पर भी अगर देनदार बकाया ऋण का भुगतान नहीं करता है, तो बैंक उसके बचत खाते में से खुद उस राशि को वसूल कर सकता है.
जस्टिस एम वेणुगोपाल ने तमिलनाडु विद्युत बोर्ड के एक पूर्व अधिकारी की उस रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीयकृत बैंक द्वारा उनके कृषि ऋण को बचत खाते में आने वाली उनकी पेंशन राशि से वसूलने पर रोक लगाने का आग्रह किया था. अदालत ने पाया कि कर्ज लेते समय उनके द्वारा दी गई सहमति के अनुरूप बैंक द्वारा उनके बचत खाते में से रकम वसूलना सही है.
10 किश्तों में चुकाना था कर्ज
याचिकाकर्ता और उनके बेटे ने अक्टूबर 2012 में साझा रूप से 75,000 रुपये का कृषि ऋण लिया था. ऋण को 10 मासिक किश्तों में अप्रैल 2015 से वापस चुकाने पर सहमति बनी थी. जज ने कहा कि कई बार ताकीद कराने पर भी जब उन्होंने कर्ज नहीं चुकाया तो यह एक वसूल न किए जा सकने वाला ऋण बन गया.
लोन कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक, बैंक इस तरह से ऋण वसूलने की संभावना तलाशने को विवश हो गया. उन्होंने कहा कि यह याचिकाकर्ता और उसके बेटे की जिम्मेदारी है कि वे इस ऋण की किश्तों का भुगतान करें और वे इस स्थिति से बच नहीं सकते.
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