85 वर्षीय विजयलक्ष्मी अरोरा पिछले 50 सालों से रोजाना इतनी ही दूरी साइकिल से नापती हैं…

 जिस उम्र में लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं, उसमें यदि कोई हर दिन 35 किलोमीटर साइकिल चलाए तो! वह भी एक महिला! यकीन नहीं होता, लेकिन ये सौ फीसद सच। 85 वर्षीय विजयलक्ष्मी अरोरा पिछले 50 सालों से रोजाना इतनी ही दूरी साइकिल से नापती हैं। लंबी पैदलचाल भी उनकी दिनचर्या में शामिल है।

पैंतीस वर्ष की उम्र में एक बार बिस्तर क्या पकड़ा, समझ में आ गया कि तंदुरुस्ती लाख नियामत। उसके बाद से आज तक बीमार नहीं पड़ीं। सभी दांत भी सलामत हैं। शुरुआत में बहू, नाती-पोते, पड़ोसी, हमउम्र महिलाएं, सभी ने रोका। उनकी हंसी तक उड़ाई, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। आज वे रोल मॉडल हैं। बच्चे उन्हें ‘साइकिल वाली दादी’ कहते हैं। उनसे ही प्रेरित होकर नाती आज जिम चलाता है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के इस शहर के हाटकचौरा क्षेत्र की निवासी विजयलक्ष्मी का वर्ष 1952 में आयुर्वेद चिकित्सक सुदर्शन पाल अरोरा से विवाह हुआ था। सुदर्शन बैलाडीला में निजी प्रैक्टिस करते थे। वर्ष 1968 में विजयलक्ष्मी की तबीयत खराब हुई तो सुदर्शन उन्हें गोरखपुर स्थित आरोग्यधाम लेकर गए। वहां के चिकित्सक डॉ. केके मोदी ने उन्हें नियमित व्यायाम करने की सलाह दी। इसके बाद से उन्होंने जीवन भर फिट रहने की ठान ली और साइकिल को ही अपनी सखी बना लिया। तब से शुरू हुआ साइकिलिंग का अभ्यास आज भी बदस्तूर जारी है।

यह है दादी की दिनचर्या

सुबह चार बजे उठना। पांच से सात बजे तक पैदल चलना। नाश्ते के बाद एक घंटे आराम। फिर निकल पड़ती हैं साइकिल लेकर। दोपहर में घर लौटने के बाद भोजन करती हैं। विश्राम के बाद शाम को फिर वॉक पर निकल जाती हैं। इस तरह दोनों समय वॉकिंग और 35 किलोमीटर साइकिलिंग ही उनकी सेहत का राज है।

जिद के आगे किसी की न चली

पति का काफी पहले स्वर्गवास हो चुका है। 65 वर्षीय बड़े बेटे ने भी सालभर पहले दुनिया छोड़ दी। शुरुआत में बहू व बच्चे साइकिल चलाने से उन्हें मना करते थे। उम्र को देखते हुए उन्हें घर में आराम करने को कहते थे, लेकिन उनकी जिद के आगे किसी की न चली। आज वे परिजनों के लिए ही नहीं, पूरे इलाके में सभी की प्रेरणास्नोत हैं।

नई पीढ़ी सेहत को लेकर संजीदा नहीं

विजयलक्ष्मी मानती हैं कि नई पीढी सेहत को लेकर संजीदा नहीं है। आधुनिक सुख-सुविधाओं ने नई पीढ़ी को आरामतलब बना दिया है। लोग अब न तो पैदल चलते हैं और न ही किसी प्रकार का शारीरिक व्यायाम करते हैं। इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती जा रही है। वे बच्चों को संदेश देती हैं कि साइकिल भले न चलाएं, लेकिन वॉक व नियमित व्यायाम जरूर करें।

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