ओडिशा के पुरी जिले में स्थित सूर्य मंदिर दुनियाभर में काफी मशहूर है। इस मंदिर का निर्माण 750 साल पहले किया गया था। इतने साल बीतने के बाद भी इस मंदिर की विशालता, अद्वितीयता और कलात्मक भव्यता कायम है।
सूर्य नारायण को समर्पित है मंदिर
यह मंदिर भगवान सूर्य नारायण को समर्पित है जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण के नाम से पुकारते हैं। यही वजह है कि इस क्षेत्र को अर्क क्षेत्र या पद्म क्षेत्र भी कहा जाता है।
भगवान कृष्ण के बेटे ने की थी स्थापना
पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने की थी। दरअसल उनके पुत्र को ऋषि कटक के श्राप के कारण कोढ़ रोग हो गया था। इसके बाद साम्भ ने चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में 12 वर्षों तक घोर तपस्या की। जिससे भगवान प्रसन्न हो गए।
सूर्यदेव की मूर्ति मिली
घोर तपस्या के बाद जब साम्ब का रोग ठीक हो गया तो उसने चंद्रभागा नदी में स्नान किया। तभी स्नान करते हुए उसे वहां एक मूर्ति मिल गई। मूर्ति सूर्य भगवान के शरीर के भाग से देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनाई थी। साम्ब ने अपने बनवाए मंदिर में मूर्ति को स्थापित किया। तभी से इस स्थान को पवित्र कहा जाने लगा।
बड़े रथ के आकार में बना है मंदिर
ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर रथ के आकार में बना हुआ है। इसमें कीमती धातुओं के पहिये, पिलर और दीवारें बनी हैं। मंदिर के पहियों की खासियत है कि ये धूपघड़ी का काम करते हैं। जिसकी सहायता से दिन और रात दोनों ही बार सही समय का पता चलता है।
यूनेस्को ने किया विश्व विरासत घोषित
इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व विरासत का दर्जा दिया है। साथ ही यह मंदिर भारत के सात आश्चर्यों में भी शामिल है। कई इताहसकारों का मानना है कि मंदिर का निर्माण पूर्वी गंगा साम्राज्य के महाराजा नरसिंहदेव एक ने 1250 सीई में करवाया था। यह मंदिर लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है और दूर दूर से लोग इसे देखने आते हैं।