30 साल पहले गांधी रोड पर अपने पिता राजाराम के साथ स्टील के बक्से बनाने की दुकान चलाने वाले पंकज ने पिता का साथ छोड़कर जुर्म की दुनिया चुनी थी। पंकज के कदम ऐसे आगे बढ़े कि उसने दोबारा पिता की दुकान की ओर पलटकर भी नहीं देखा। उस दौरान प्रापर्टी डीलिंग का काम चरम पर था और पंकज ने कम समय में ज्यादा पैसे कमाने का यही जरिया चुना।
वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद प्रापर्टी के दाम जिस तेजी से बढ़े पंकज की रफ्तार भी उसी तेजी से बढ़ती गई। विवादित जमीनों पर कब्जे व उनकी सौदेबाजी में पंकज ने अकूत दौलत कमाई। प्रापर्टी का यही ‘खेल’ साल 2010 में गैंगवार की वजह बना, जिसमें पंकज भी अब दस साल बाद मात खा गया।
खतौली में हुई हत्या
मुजफ्फरनगर के खतौली क्षेत्र में मीरापुर रोड पर गंगधाड़ी पुलिस सहायता केंद्र के बराबर में देहरादून के प्रॉपर्टी डीलर पंकज की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई। उसके शव को हत्यारे फॉर्च्यूनर गाड़ी में बंद करके भाग गए। पुलिस ने शीशा तोड़कर शव कार से निकाला। कार से 315 बोर का एक तमंचा बरामद हुआ है। हत्यारों का कोई सुराग नहीं लग सका है। माना जा रहा है कि हत्या प्रॉपर्टी के विवाद में की गई।
मृतक के मोबाइल से उसकी पहचान पंकज सिंह (45) पुत्र राजाराम निवासी आदर्श विहार, नत्थनपुर थाना नेहरू कालोनी देहरादून के रूप में हुई। पुलिस की सूचना पर पत्नी अंशुल व दोस्त मोने आदि खतौली कोतवाली पहुंचे। अंशुल ने बताया कि पंकज देहरादून में प्रॉपर्टी डीलर का काम करता था। कार पंकज के दोस्त देवेंद्र की है, हालांकि वह सहारनपुर निवासी करन सिंह के नाम पंजीकृत है।
अपराध की दुनियां में पंकज का सफर
पुलिस जांच में पता चला कि पिता की दुकान छोड़ने के बाद पंकज ने रिस्पना पुल के पास टैक्सी स्टैंड में ड्राइवर का काम भी किया। वहीं, उसकी मुलाकात जितेंद्र रावत उर्फ जित्ती से हुई। दोनों की दोस्ती ऐसे बढ़ी कि नेहरू कालोनी क्षेत्र में इनकी दबंगई भी सिर चढ़कर बोलने लगी। पहले दोनों शराब के धंधे में घुसे और शराब की डिलीवरी से लेकर अवैध शराब की सप्लाई का धंधा भी किया।
यहां से जुर्म की दुनिया में दोनों की एकसाथ एंट्री हुई और जो बाद में प्रापर्टी के धंधे पर पहुंच गईं। कब्जाई गई प्रापर्टी मोटी डील कर मुक्त कराना हो या फिर विवादित जमीन पर कब्जा कर उसकी सौदेबाजी, इन दोनों का शगल बन गया। इसी दौरान जित्ती जोगीवाला के एक अमीर शख्स का करीबी बन गया। जिसकी करोड़ों की संपत्ति सालों से कब्जे में थी। जित्ती और पंकज ने अपनी दबंगई से सभी संपत्ति कब्जा मुक्त कराई व इसके बाद क्षेत्र में प्रापर्टी डीलिंग के सबसे बड़े ‘खिलाड़ी’ बन गए।
इसी दौरान इलाके के हिस्ट्रीशीटर बब्बल ने दोनों को अपने गैंग में शामिल कर लिया और दोनों जुर्म की दुनिया में अंदर तक एंट्री कर गए। बब्बल विवादित जमीनों पर कब्जे के साथ ही पार्किंग ठेकेदारी का काम करता था। कुछ ही साल में इनके रिश्तों में खटास आ गई। जिसमें पंकज और जित्ती ने 2010 में बब्बल को ठिकाने लगा दिया।
जित्ती के तभी से जेल में होने का सीधे-सीधे फायदा भी पंकज को मिला और वर्तमान में पंकज अकेला पूरा धंधा देखने लगा। 30 जनवरी 2011 को हुए नरेश रॉव हत्याकांड के बाद जित्ती और पंकज में भी गहरी खाई पड़ गई थी। जमानत पर बाहर आकर पंकज ने भी जित्ती को पीछे छोड़ दूसरे धंधेबाजों से हाथ मिला लिया। पुलिस को संदेह है कि पंकज की हत्या प्रापर्टी के ही खेल में हुई है, जो उसने कभी जित्ती के साथ शुरू किया था।
यतींद्र का करीबी बन गया था पंकज
पुलिस जांच में सामने आया है कि पंकज इन दिनों मेरठ के कुख्यात यतींद्र चौधरी का करीबी था। बब्बल और नरेश रॉव के कत्ल में गिरफ्तारी के बाद यतींद्र ने ही जमानत में उसकी मदद की थी। यतींद्र और जित्ती का छत्तीस का आंकड़ा रहा है। माना जा रहा है कि पंकज के कत्ल की एक वजह यतींद्र से उसकी करीबी भी हो सकती है। पुलिस की मानें तो यतींद्र का भी दून में प्रापर्टी के धंधे में खासा दखल रहा है। नेहरू कालोनी क्षेत्र में जनवरी-2008 में यतींद्र पर व्यापारी के कत्ल का मामला भी दर्ज हुआ था।