आप सभी जानते ही होंगे भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार उनके 12 स्वरूपों में से एक है। यह अवतार कुछ ऐसा था जिसमें श्री हरि के शरीर आधा हिस्सा मानव का और आधा हिस्सा शेर का था। इस वजह से ही इस अवतार को नरसिंह अवतार कहा जाता है। जिस दिन श्री हरि ने यह अवतार लिया था उसे नरसिम्हा द्वादशी, नरसिंह द्वादशी कहा जाता है। यह हर साल होली से तीन दिन पहले होती है। इस दिन नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 25 मार्च 2021 को आ रहा है। जी हाँ, यह तिथि सुबह 09 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी, ऐसे में आमलकी एकादशी के साथ नरसिंह द्वादशी का व्रत भी 25 मार्च को ही रखा जाएगा। अब हम आपको बताने जा रहे हैं नरसिम्हा द्वादशी की कथा।
नरसिम्हा द्वादशी की कथा- प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान मांगा कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न ही पशु, न ही वो दिन में मारा जाए और न ही रात में, न ही अस्त्र के प्रहार से और न ही शस्त्र से, न ही घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर। इस वरदान को पाने के बाद वो खुद को अमर समझने लगा। लोगों को प्रताड़ित करने लगा और खुद को भगवान समझने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। उसके कई बार रोकने पर भी प्रहलाद ने भगवान की पूजा करना नहीं छोड़ी। इससे नाराज हिरण्यकश्यम ने प्रहलाद को बहुत प्रताड़ित किया। कई बार उसे मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया।
उसने अपनी बहत होलिका के साथ प्रहलाद को आग में भी बैठाया क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका मर गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यम ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया और प्रहलाद को उसे गले लगाने को कहा। तभी उस खंभे को चीरते हुए नरसिंह भगवान का उग्र रूप प्रकट हुआ। उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह रूप जो न मनुष्य था, न पशु। भगवान नरसिंह ने अपने तेज नाखूनों, जो न शस्त्र थे, न अस्त्र, से उसका वध किया और प्रहलाद को जीवनदान दिया।