25 दिन मौत से लड़ने के बाद जिंदगी की जंग हार गया बीमार हाथी,

पूरे 25 दिन तक मौत से लड़ने के बाद आखिरकार बीमार हाथी अपनी जिंदगी हार गया। करीब आठ साल के इस नर हाथी का इलाज रायपुर व बैंगलुरू के वन्य प्राणी विशेषज्ञ कर रहे थे। उसकी हालत लगातार नाजुक बनी हुई थी और बुधवार की शाम 6.20 बजे उसकी सांसें थम गई। उच्चाधिकारियों की उपस्थिति में गुरुवार की सुबह उसका पोस्टमार्टम किया जाएगा, जिसके बाद अंतिम संस्कार की कार्रवाई पूरी की जाएगी।

इलाज के दौरान हुई हाथी की मौत का यह ताजा मामला जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर कोबा वनमंडल अंतर्गत कुदमुरा परिक्षेत्र के गुरमा की है। गुरमा के आश्रित कटराडेरा गांव में निवासरत गजाराम राठिया के आंगन में 14 जून को दोपहर करीब 12 बजे जंगल की ओर से आया एक हाथी बाउंड्री तोड़कर आंगन में पहुंच गया। बताया जा रहा कि उसकी स्थिति बेहद खराब थी, जिसकी वजह से वह आंगन में गिर पड़ा।

पानी गिरने की वजह से आंगन कीचड़ से सराबोर था, जिसमें वह लोटकर तड़पने लगा। अचानक घर में हाथी के आ धमकने पर पहले तो ग्रामीण डरे-सहमे थे,लेकिन उसकी हालत खराब होते देख बीटगार्ड को इस घटना की जानकारी दी गई। घटना के बाद अधिकारी मौके पर पहुंचे और रायपुर मुख्यालय को सूचित कर वन्य प्राणी विशेषज्ञों एवं चिकित्सकों को बुलवाया गया। 14 जून की देर रात विशेषज्ञों के पहुंचने के बाद बीमार हाथी का इलाज शुरू किया गया था।

वन्य प्राणी विशेषज्ञों ने पेट में कृमि की शिकायत पर अपनी जांच व इलाज प्रक्रिया शुरू की थी। उसे स्वस्थ करने लगातार प्रयास किया जा रहा था, ताकि वह कम से कम खड़ा हो सके। डॉक्टरों की सारी कोशिशें नाकाम रहीं। उसकी स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी।

एक सप्ताह पहले हाथी को तमोर पिंगला स्थित हाथी पुनर्वास केंद्र ले जाकर इलाज करने का प्रस्ताव भी दिया गया था, लेकिन उसकी स्थिति खराब हो चली थी कि इतने लंबे सफर के लायक नहीं थी। अधिकारियों ने बताया कि लगातार हालत बिगड़ती गई और कई अंगों के विफल होने से उसकी मौत हो गई। बुधवार को शाम हो जाने के कारण पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी।

-1000 किग्रा था वजन, 150 किग्रा घट गया

जब वह मिला था तब उसका वजन एक हजार किलोग्राम से अधिक था, जो कमजोरी के बढ़ने के साथ कम होकर 850 किलोग्राम पर आ गया। इस बीच लगातार एक ही अवस्था में पड़े रहने के कारण उसकी कमजोर स्थिति में सुधार ला पाना मुश्किल हो रहा था। सारे शरीर का भार एक जगह पर केंद्रित होता रहा, जो उसके लिए काफी नुकसानदेह होता गया। कमजोरी के चलते उसके मुंह में छाले भी पड़ गए थे, जिससे अपने आहार के अनुरूप भोजन नहीं कर पा रहा था। किसी तरह ड्रिप चढ़ाकर उसकी हालत स्थित रखने का प्रयास किया जा रहा था।

-सिस्टेमेटिक ऑर्गन फेलियर : डीएफओ

कोरबा वनमंडल के डीएफओ गुरूनाथन एन ने बताया कि 14 जून को गुरमा गांव के आश्रित ग्राम कठराडेरा में करीब आठ वर्ष के बीमार वयस्क हाथी गंभीर अवस्था में मिला था। उसका इलाज अपनी चिकित्सा टीम के साथ रायपुर से आए वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एवं वन्यप्राणी चिकित्सा अधिकारी डॉ. राकेश वर्मा (एसीएफ) एवं बैंगलुरू के वन्यप्राणी विशेषज्ञ लगातार कर रहे थे।

हाथी के शरीर में सीवियर वर्म इंफेक्शन, डीहाइड्रेशन एवं खून की कमी की शिकायत पाई गई थी। लगातार 25 दिन तक वन्यप्राणी चिकित्सकों के दल, महावत एवं वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की देख-रेख में इलाज किया जा रहा था, पर बुधवार को शाम 6.20 बजे सिस्टेमेटिक ऑर्गन फेलियर के कारण हाथी की मौत हो गई।

अब तक सात हाथियों की मौत

कुदमुरा के गुरमा की ताजा घटना को मिलाकर प्रदेश में कुल सात हाथियों की मौत हो गई है। इससे पहले नौ जून को सूरजपुर के प्रतापपुर में हथिनी की मौत से यह सिलसिला शुरू हुआ। अगले दिन इसी क्षेत्र में एक गर्भवती हथिनी, फिर बलरामपुर के अवतरी में एक हथिनी, धमतरी के माडमसिल्ली व रायगढ़ के गेरसा में दो नर मृत पाए गए। इसके बाद कोरबा व रायगढ़ में आतंक का पर्याय बन चुके गणेश की करंट लगने से धरमजयगढ़ में मौत हो गई थी।

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