40 वर्ष पूर्व दो अप्रैल, 1984 को तत्कालीन सोवियत संघ के सहयोग से भारत का प्रथम अंतरिक्ष यात्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ था राकेश शर्मा को। अब स्वाधीनता के अमृत काल में संपूर्ण स्वदेशी गर्व के साथ अंतरिक्ष में इतिहास का नवीन अध्याय लिखने की ओर अग्रसर है भारत। अंतरिक्ष में भारत के मानव अभियान पर मनीष त्रिपाठी का आलेख…
वे 1984 के उठते हुए दिन थे, जिनकी शामें बतकही, गप्पबाजियों और आती-जाती बिजली के बीच उम्र के हिसाब से परीक्षाओं की तैयारी या अंताक्षरी में बीतती थी। शहरी भारत में रंगीन टेलीविजन अभी भी बड़े लोगों की चीज थे और ‘बड़े’ होने की चाहत में मंझोले व्यापारी, मकान मालिक और कुछ-कुछ नौकरीपेशा लोग लकड़ी के शटरदार कैबिनेट वाले ब्लैक एंड वाइट टीवी सेट खरीद रहे थे। जितना बड़ा एंटीना, आदमी की उतनी बड़ी हैसियत, मगर तेज हवा का समाजवाद सबको इसके सिग्नल ठीक करने के लिए छत पर बुला ही लेता था।
यह भी ठीक उसी तरह दिनचर्या का अंग था, जैसे आने से ज्यादा जाती हुई बिजली की वजह से बार-बार बिस्तर लपेटकर छत पर आना-जाना होता था। आपातकाल से गुजर चुके आम भारतीयों को अब कुछ भी बहुत ज्यादा चौंकाता नहीं था। क्रांति का काल समय की चाल के साथ बीत गया था, पुराने सत्ताधीशों की वापसी हो गई थी, जनता के हाथ में था तो केवल एशियाड के अप्पू की छाप वाला जूट का झोला और पंजाब में अशांति की रूटीन खबरें छापता कोई अखबार।
आसमान से ऊंचा उत्साह
सोते हुए लोकतंत्र के उस सुस्त से अप्रैल की शुरुआत में अचानक ही एक बड़ा धमाका हुआ। तीन अप्रैल, 1984 की सुबह समाचार पत्रों के लिए गलियों में शोर मचा कर अपनी प्रतियां बेचने का अवसर लेकर आई, उनके प्रकाशन क्षेत्र से दूर-दराज के इलाकों में उत्साहित कर्मयोगी दोपहर बाद तक आवाज लगाते रहे और शाम होते-होते छतों पर एंटीना साधे जाने लगे।
भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा (अब सेवानिवृत्त विंग कमांडर प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री बन चुके थे। वे तत्कालीन सोवियत संघ के अंतरिक्ष अभियान में भारत से इसरो के प्रतिभागी के रूप में सोयूज टी-11 अंतरिक्षयान में उड़ान भर रहे थे, जो उन्हें अपने रूसी समकक्षों यूरी मेलिशेव और गेनाडी स्त्रिकालोव के साथ सोवियत संघ के स्पेस स्टेशन सैल्यूत 7 में ले जा रहा था। रूस के सहयोग से तत्कालीन सोवियत भूमि (कजाकिस्तान) से भरी गई यह उड़ान भारत के लिए अंतरिक्ष में बहुत बड़ी छलांग थी। 35 साल के राकेश शर्मा के साथ ही भारत अपने किसी नागरिक को बाहरी अंतरिक्ष में भेज सकने वाला 14वां राष्ट्र बन गया था।
आश्चर्यचकित थे देशवासी
तब ट्रंक काल से तरक्की कर रेलवे स्टेशन पर लगे टेलीफोन के डिब्बे में सिक्का डालकर बात करने तक पहुंच चुके भारतीयों ने राकेश शर्मा के सोवियत स्पेस स्टेशन पहुंच जाने के बाद एक अजूबा और देखा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अंतरिक्ष में राकेश शर्मा से वीडियो संदेश पर बात कर रही थीं। आज यह बच्चों जैसी बात लगती है मगर उस दौर में यह कल्पनातीत तकनीक थी, जिसे एक संयुक्त टीवी न्यूज कान्फ्रेंस के रूप में सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम के तकनीशियनों ने संभव किया था।
इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा, ‘ऊपर से भारत कैसा दिखता है?’ और मुस्कुराते चेहरे के साथ राकेश शर्मा का उत्तर पूरे देश को उत्साह से भर गया ‘सारे जहां से अच्छा!’ इंदिरा गांधी ने इस बातचीत में स्क्वाड्रन लीडर रवीश मल्होत्रा का भी जिक्र किया, जो इस अभियान के लिए रूस के यूरी गागरिन अंतरिक्ष केंद्र में प्रशिक्षण का हिस्सा थे, मगर अंतिम चयन दोनों में से किसी एक का ही होना था।
अद्भुत अभियान और वह खरोंच
इस महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान में लगभग आठ दिन बिताने के बाद राकेश शर्मा की पृथ्वी पर वापसी हुई। यह अभियान तत्कालीन सोवियत संघ और भारत की मैत्री की मिसाल बन गया और राकेश शर्मा राष्ट्र के नायक। लोग उन्हें छू-छूकर देखते थे। वे सामान्य ज्ञान की पुस्तकों का अभिन्न अंग बन चुके थे, मगर एक खरोंच इसरो को दिल तक चीर गई थी।
एक बहुपठित-प्रतिष्ठित अमेरिकी समाचार पत्र ने खबर में छिपा कर खंजर जो मार दिया था, ‘यह मानकर चलिए कि भारत के लिए अनंतकाल तक अपना स्वदेशी मानव अंतरिक्ष अभियान विकसित कर पाना संभव नहीं है। रूसी तकनीक और रूसी जमीन की सहायता से हुई यह उड़ान, किसी भारतीय नागरिक और भारत के लिए लंबे समय तक अंतिम उपलब्धि ही रहेगी!’
अमृतकाल का अंतरिक्ष में आगमन
समय और सामर्थ्य देश को सुप्तावस्था से जागृत करने के लिए सुयोग्य नायक की प्रतीक्षा करते हैं। अनंतकाल की उस विद्वेषपूर्ण भविष्यवाणी को भारत ने अमृतकाल में नृसिंह की तरह वैसे ही चीर दिया, जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने बघनखा से अफजल खान का हृदय विदीर्ण कर दिया था।
कभी साइकिल पर राकेट लादकर प्रक्षेपण केंद्र तक ले जाने वाले भारत ने चंद्रमा के दुर्गम दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान उतार दिया है, सूर्य के परिक्रमा पथ पर आदित्य एल-1 की सफलता ने विश्व की आंखें चकाचौंध कर दी हैं और 27 फरवरी, 2024 को देश ने सिंहगर्जना के साथ घोषित कर दिए हैं संपूर्ण स्वदेशी मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान ‘गगनयान’ के चार व्योमवीरों के नाम! तिरुअनंतपुरम(केरल) स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब इस उद्देश्य से ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर, अजित कृष्णन, अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला से देश को परिचित कराया तो जैसे पूरा देश उनके साथ दृढ़ संकल्पित हो विश्व को देख रहा था।
संकल्प अंतरिक्ष में अंगद बनने का, पांव जमा देने का। अभियान है परंतु थोथा अभिमान नहीं, अतएव अनुभव और मैत्री का सम्मान करते हुए इन व्योमवीरों का प्रारंभिक सघन प्रशिक्षण उसी रूसी अंतरिक्ष प्रशिक्षण संस्थान में संबद्ध किया गया, जहां से राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा ने अपने अंतरिक्ष प्रशिक्षण का श्रीगणेश किया था। सब कुछ योजना के अनुरूप रहा तो इस वर्ष के अंत या अगले के मध्य तक भारत इतिहास का एक नया स्वदेशी अध्याय लिख देगा। 40 वर्ष पहले के ‘सारे जहां से अच्छा’ को ‘हिंदोस्ता हमारा’ से संपूर्णता देने का अमृतकाल प्रारंभ हो चुका है!
2007 में इसरो ने अंतरिक्ष में मानव भेजने के लिए विकास अभियान प्रारंभ कर दिया था, मगर सरकारी उदासीनता से 2013 में फाइल ठंडे बस्ते में चली गई। अंततः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे 2017 में जागृत किया और 15 अगस्त 2018 को राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘2022 तक हम अंतरिक्ष में मानव अभियान संचालित करने की क्षमता प्राप्त कर लेंगे।’ कोविड-19 की वजह से यह अभियान दो साल के लिए विलंबित हुआ अन्यथा यह स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ का अभिन्न अंग होता! 2035 तक भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना भी है इसरो की वरीयता सूची में!