दिल्ली में विदेशी राजनयिक भवनों की भरमार वाला चाणक्यपुरी एरिया आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर की जनवरी, 1994 में भारत यात्रा का पहला ठिकाना था। वह यहां फाइव स्टार दर्जे वाले अशोका होटल में ठहरा था। इस दौरे पर इस पाकिस्तानी आतंकी ने पुर्तगाली पासपोर्ट के जरिए देश में प्रवेश लिया था और आव्रजन अधिकारियों को एयरपोर्ट पर यह कहकर धोखा दिया था कि वह जन्म से गुजराती भारतीय है।
बांग्लादेश से भारत पहुंचने के दो सप्ताह बाद ही जम्मू-कश्मीर में गिरफ्तार कर लिए गए आतंकी मसूद अजहर से उस समय की गई पूछताछ रिपोर्ट के मुताबिक, वह अशोका होटल के बाद राजधानी के होटल जनपथ में भी ठहरा था। साथ ही मसूद ने तब लखनऊ, सहारनपुर और देवबंद के चर्चित इस्लामिक मदरसे दारूल-उलूम की भी यात्रा की थी।
पुलवामा में सीआरपीएफ पर आतंकी हमला कराने के आरोपी मसूद ने तब पूछताछ के दौरान कहा था, मैंने दो दिन ढाका में बिताए और उसके बाद बांग्लादेश एयरलाइंस के विमान से दिल्ली पहुंच गया। इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मैं 29 जनवरी की सुबह शुरू होने के दौरान उतरा। आव्रजन अधिकारियों ने पूछा कि आप पुर्तगाली नहीं लगते, लेकिन मैंने तत्काल उत्तर दिया कि मैं जन्म से गुजराती हूं। इतना सुनने पर उन्होंने बिना कुछ बोले मेरे पासपोर्ट पर मुहर लगा दी। सुरक्षा एजेंसियों के पास मौजूद इस पूछताछ रिपोर्ट में मसूद ने आगे कहा, मैंने एक टैक्सी किराये पर ली और ड्राइवर को एक अच्छे होटल ले जाने के लिए कहा। वह मुझे चाणक्यपुरी के अशोका होटल में ले आया, जहां मैंने कमरा ले लिया।
अशोका होटल में मिला आतंकियों से, देवबंद के दारूल-उलूम में बिताई थी रात
पूछताछ रिपोर्ट के मुताबिक, अजहर ने बताया था कि वह पूरी रात अशोका होटल में ही रहा और एक कश्मीरी नागरिक अशरफ दार को फोन किया। इसके बाद दार अपने साथ आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार के सदस्य अबू महमूद को लेकर होटल पहुंचा। अजहर ने आगे बताया कि मैंने देवबंद जाने की इच्छा जताई तो दार और महमूद मुझे एक मारुति कार में दारूल-उलूम लेकर गए। हमने रात दारूल-उलूम में ही बिताई और अगली सुबह पहले गंगोह और वहां से सहारनपुर गए।
सभी जगह छिपाई अपनी पहचान
सहारनपुर में अजहर ने तब्लीक-उल-जमात की एक मस्जिद में रात बिताई। अजहर के मुताबिक, 31 जनवरी की सुबह वह फिर उसी मारुति कार से दिल्ली लौटा और जलालाबाद में मौलाना मासिर-उल-उल्लाह खान के यहां रात बिताई। इसके बाद 9 फरवरी को श्रीनगर रवाना होने तक वह कनॉट प्लेस के पास जनपथ होटल में रहा। बीच में 6 और 7 जनवरी को वह लखनऊ के मौलाना अबू हासन नदवी उर्फ अली मियां से मिलने उनके मदरसे पर पहुंचा, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी। बस से दिल्ली लौटकर वह करोल बाग के होटल शीश महल में ठहरा। हालांकि इनमें से किसी भी ठिकाने पर उसने अपनी असली पहचान नहीं बताई।
आतंकियों के लिए खरीदे निजामुद्दीन से कंपास
लखनऊ से 8 फरवरी को दिल्ली लौटने पर मसूद अजहर निजामुद्दीन के सेंटर ऑफ तब्लीग-उल-जमात में गया। निजामुद्दीन से उसने कश्मीर घाटी के आतंकियों को तोहफे में देने के लिए 12 कंपास खरीदे, जिससे वे मक्का की दिशा जानकर नमाज पढ़ सकें। इसके बाद 9 फरवरी को वह अशरफ दार के साथ श्रीनगर पहुंचा, जहां लाल बाजार के मदरसा कासमियां में उसे ठहराया गया। उसी शाम उससे मिलने हरकल-उल-जिहाद अल-इस्लामी आतंकी संगठन में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाला अमजद बिलाल और उसका साथी सज्जाद अफगानी पहुंचे। दोनों हथियारबंद थे।
सभी पाकिस्तानी आतंकियों से की थी मुलाकात
अफगानी 10 फरवरी को मसूद को माटीगुंड एरिया में ले गया, जहां पाकिस्तान से आकर घाटी में सक्रिय हुए सभी आतंकी जमा थे। इन सभी को संबोधित करने के बाद मसूद अपने साथी अफगानी और एक अन्य हथियारबंद आतंकी फारुक के साथ वापस लौट रहा था तो कार खराब हो गई। तीनों ने अनंतनाग पहुंचने के लिए एक थ्री-व्हीलर किया, लेकिन 2-3 किलोमीटर बाद ही चेकिंग कर रही सेना ने उन्हें रोक लिया।
फारुक फायरिंग करते हुए भाग निकला, लेकिन मसूद और अफगानी पकड़े गए। बता दें कि बाद में आतंकियों ने 1999 में भारतीय विमान का अपहरण कर उसे कंधार ले जाकर यात्रियों के बदले में मसूद व दो अन्य आतंकियों को रिहा करा लिया था।