अरबों रुपये की संपत्ति के बंटावरे को लेकर रामपुर का नवाब खानदान सुर्खियों में है। लेकिन, इस खानदान की पुरानी भी कई ऐसा दास्तां हैं जो आज भी लोगों की जुबां पर हैं। नवाब मुर्तजा अली खां की बेगम आफताब जमानी की लाश 19 साल तक कोठी खासबाग में रखी रही थी। कई साल तक तो इसकी सुरक्षा में पुलिस भी तैनात रही। आफताब जमानी बेगम का इंतेकाल तीन अगस्त 1993 को हुआ था, लेकिन दफ्न फरवरी 2012 में हो सका।

दरअसल, बेगम ने जिंदा रहते खुद को इराक के कर्बला में दफन करने की वसीयत की थी। नवाब खानदान के ज्यादातर लोग कर्बला में ही दफन होते रहे हैं। उनके पति भी कर्बला में दफ्न हुए थे। बेगम की जब मौत हुई, तब इराक में सद्दाम हुसैन का शासन था और हालात अच्छे नहीं थे। इराक पर दुनियाभर ने पाबंदी लगा रखी थीं और जंग चल रही थी। ऐसे हालात में लाश को कर्बला ले जाने की परमीशन नहीं मिल सकी। इस कारण लाश को इमामबाड़ा खासबाग के एक कमरे में रखा गया। इसे ताबूत में रखने के बाद कमरे को पूरी तरह सीलबंद कर दिया गया, ताकि हवा भी अंदर न जा सके। खिड़की दरवाजा उखाड़कर चिनाई कर दी गई थी। इतना सब होने के बाद लाश की सुरक्षा के लिए पुलिस भी तैनात रही थी। कई साल बाद यहां ड्यूटी के दौरान एक सिपाही की मौत हो गई तो यहां से पुलिस हटा ली गई।
इस दौरान मां लाश को इराक ले जाने के लिए उनके बेटे मुराद मियां और बेटी निगहत भी ने कई बार कोशिश की। जब इराक के हालात सामान्य हुए तो 18 साल बाद लाश को इराक ले जाने की परमीशन मिल सकी। इसके बाद कमरे को तोड़कर लाश को बाहर निकाला गया और ताबूत में ही इराक ले जाया गया। वहां उनका दफ्न हो सका।
रामपुर इतिहास के जानकार शाहिद महमूद खां कहते हैं कि आफताब जमानी बेगम आखिरी नवाब रजा अली खां की बड़ी बहू थीं। इस कारण शाही खानदान में उनका बड़ा रुत्बा था। उनके दस्तरखान पर 25-30 खास लोग मौजूद रहते थे। इनके साथ बैठकर खाना खाती थीं। उन्होंने एक बार लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। यह चुनाव भी उन्होंने अपने देवर नवाब जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां के मुकाबले लड़ा, लेकिन जीत नहीं सकी थीं।
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