18 अक्टूबर को तुला संक्रांति पर्व रहेगा। इस दिन सूर्य दक्षिण गोल में चला जाता है। सूर्य के बदलाव के कुछ ही दिनों बाद शरद ऋतु खत्म हो जाती है और हेमंत ऋतु शुरू होती है। अब सूर्य 17 नवंबर तक सूर्य तुला राशि में रहेगा।
तुला संक्रांति पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाने और सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इस पर्व पर तांबे का बर्तन, पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, माणिक्य या लाल चंदन का दान किया जा सकता है।
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि ऋग्वेद सहित पद्म, स्कंद और विष्णु पुराण के साथ ही महाभारत में सूर्य पूजा का महत्व बताया गया है। तुला संक्रांति पर तीर्थ स्नान, दान और सूर्य पूजा करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इससे उम्र बढ़ती है। सूर्य पूजा से सकारात्मकता ऊर्जा मिलती है और इच्छा शक्ति भी बढ़ती है।
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। ये एक खगोलीय घटना भी है। हिन्दू कैलेंडर और ज्योतिष के मुताबिक साल में 12 संक्रान्ति होती हैं। हर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हर संक्रांति का अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है। संक्रांति पर पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफी महत्व है।
नवरात्रि में तुला संक्रांति का संयोग
डॉ. मिश्र के मुताबिक इस बार ऐसा संयोग बन रहा है जब तुला संक्रांति नवरात्रि के दरमियान रहेगी। आमतौर ये संक्रांति नवरात्रि से पहले इसके बाद पड़ती है। इन दो पर्वों का संयोग देश के शुभ रहेगा। इससे सुख और समृद्धि बढ़ेगी। सूर्य और शक्ति के प्रभाव से देश की शक्ति बढ़ेगी।
इन दोनों पर्व को पूरे भारत में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। राशि परिवर्तन के वक्त सूर्य की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की जाती है।
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