वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने की नीति पर काम चल रहा है। संबंधित मंत्रालयों से सारी व्यवस्था को ठीक करने के बाद इसकी घोषणा की जाएगी। प्रस्तावित नीति को मंजूरी मिलने के बाद यह दोपहिया समेत सभी वाहनों पर लागू होगी।
सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी पहले ही कह चुके हैं कि नीति को मंजूरी के बाद भारत एक वाहन क्षेत्र के बड़े विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर सकता है। क्योंकि वाहन उद्योग से जुड़ा माल यानी स्टील, एल्युमीनियम और प्लास्टिक कबाड़ के रिसाइकिल होने से मिल जाएगा। इससे वाहनों की कीमत में 20 से 30 फीसदी कमी आएगी।
नीति के मसौदे के मुताबिक 15 साल पुराने वाहनों को हर छह महीने में उसके सही होने का प्रमाणपत्र (फिटनेस सर्टिफिकेट) लेना होगा। अभी यह समयसीमा एक साल है।
बता दें कि लंबे समय से प्रस्तावित वाहन कबाड़ नीति को कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा गया है। प्रस्ताव को मंजूरी मिलते ही, साल 2005 के पहले के रजिस्टर्ड वाहनों के लिए फिर से रजिस्ट्रेशन और फिटनेस करवाना महंगा पड़ सकता है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में इन दिनों 2005 से पहले के रजिस्टर्ड 2 करोड़ से ज्यादा वाहन सड़कों पर हैं।
सरकार के इस कदम के बाद इन वाहनों का दोबारा से पंजीकरण कराना महंगा साबित हो सकता है। नए उत्सर्जन मानकों के मुताबिक नए वाहनों के मुकाबले ये वाहन 10 से 25 फीसदी तक ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। नितिन गडकरी बता चुके हैं कि उन्होंने प्रस्तावित नीति पर बनाए गए कैबिनेट नोट को मंजूरी दे दी है।
पिछले कुछ सालों में भारत के वाहन बाजार में काफी गति आई है। अगर पुराने प्रदूषण उत्सर्जन मानकों से तुलना करें, तो साल 2005 से पुराने वाहन नए मानकों से 10 से 25 फीसदी तक ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। यहां तक कि अगर इन वाहनों का रखरखाव सावधानी से भी किया जाए, तो भी वे उत्सर्जन मानकों से ज्यादा प्रदूषण करेंगे। साथ ही सड़क सुरक्षा के लिए भी हानिकारक हैं।
प्रस्तावित नीति में निजी वाहनों के लिए रजिस्ट्रेशऩ फीस बढ़ाने के साथ ट्रांसपोर्ट वाहनों के लिए फिटनेस सर्टिफिकेशन चार्जेज में बढ़ोतरी की गई है। ऐसे वाहनों को सड़कों से हटाने के लिए प्रस्तावित नीति में और भी कई प्रावधान हो सकते हैं।
साथ ही इस नीति में गाड़ी में लगे एयरबैग्स को वैज्ञानिक तरीकों से डिस्पोजल के साथ साइलेंसर में मिलने वाली धातुओं और रबर का इको-फ्रेंडली तरीके से निपटान किया जाएगा। वहीं गाड़ी से निकलने वाले इंजन ऑयल को जमीन पर नहीं फेंका जाएगा, बल्कि वैज्ञानिक तरीकों से निपटा जाएगा।
स्टील मंत्रालय ऐसे स्क्रैपिंग सेंटर्स पर काम कर रहा है और सड़क मंत्रालय इन्हें मान्यता देगा। साथ ही, किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बचने के लिए ऐसे वाहनों का डाटाबेस भी बनाया जाएगा।