बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से राज्यसभा की दसवीं सीट के लिए पार्टी उम्मीदवार के रूप में भीमराव अंबेडकर के नाम का एलान तेजी से बदल रही परिस्थितियों का नतीजा माना जा रहा है। सपा विधायक व पूर्व मंत्री शिवपाल यादव का रुख व कांग्रेस की अब तक चुप्पी ने ताजा फैसले में अहम भूमिका निभाई।
जानकार बताते हैं कि मायावती ने परिवार के किसी व्यक्ति को राजनीति में न लाने की बात बार-बार दोहराने के बावजूद पिछले साल अचानक भाई आनंद कुमार को बसपा में नंबर दो की हैसियत में लाते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था। उनका यह फैसला बसपा में नीतिगत परिवर्तन के रूप में देखा गया था।
इससे यह भी साफ हो गया कि जिस तरह कांशीराम के बाद माया स्थापित हुई थीं, उसी तरह वह पार्टी में भाई को स्थापित करना चाहती हैं। बताया जाता है कि राज्यसभा के लिए आनंद की उम्मीदवारी की चर्चा सोच-समझकर छेड़ी गई थी, मगर तेजी से बदल रही परिस्थितियों ने मायावती को मन बदलने को मजबूर किया। मसलन, लोकसभा उपचुनाव व राज्यसभा व विधान परिषद चुनाव के लिए सपा और बसपा के बीच समर्थन के प्रयोग पर सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने ही सवाल उठा दिए।
उन्होंने उपचुनाव में किसी से गठबंधन करने पर सपा के नुकसान की बात कही है। सपा में कम से कम पांच-छह विधायक शिवपाल के इशारे पर चलने वाले माने जाते हैं। होली में अखिलेश यादव व शिवपाल के बीच सब कुछ सामान्य न होने की बात सामने आ चुकी है। ऐसे में बसपा को इस बात का भरोसा शायद नहीं हो रहा है कि सपा के सभी अतिरिक्त वोट उसे मिल सकेंगे।
भाजपा ने 10वीं सीट के लिए अपना उम्मीदवार उतारने के दिए संकेत
भाजपा ने 10वीं सीट के लिए अपना उम्मीदवार उतारने का संकेत कर दिया है जिससे चुनाव तय माने जा रहे हैं। इसके अलावा बसपा को यह भी पता होगा कि सपा का समर्थक होने के बावजूद निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का समर्थन उनके प्रत्याशी को मिलना आसान नहीं है।
बसपा शासनकाल में राजा भैया के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई हुई थी। राजा भैया दूसरे दलों के कई विधायकों को प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस के सामने कोई विकल्प न नजर आने के बावजूद उसने सपा-बसपा समर्थन की बात सामने आने के बावजूद राज्यसभा चुनाव के लिए अब अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
विश्लेषक कहते हैं कि विधायकों की संख्या के आधार पर राज्यसभा की 10 सीटों के चुनाव में भाजपा की आठ व सपा की एक सीट पक्की है। 10वीं सीट के लिए बसपा के पास 19 विधायक हैं। उसे 18 अतिरिक्त वोट चाहिए। वहीं, भाजपा के पास 28 अतिरिक्त वोट हैं, उसे नौ अतिरिक्त वोट चाहिए।
सपा ने अपने 10 अतिरिक्त वोट बसपा को देने का एलान किया है, लेकिन कांग्रेस के कुल नौ विधायक हैं जिसने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। इस उलझी तस्वीर में भाजपा को बसपा से कम वोटों का जुगाड़ करना है। भाजपा की चार निर्दलीयों के अलावा सपा के असंतुष्ट व कांग्रेस के विधायकों में सेंध लगाने की रणनीति है। शायद यही वजह है कि आनंद को चुनावी राजनीति में उतारने से मायावती पीछे हट गईं और लोकसभा उपचुनाव के बीच दलित चेहरे के रूप में पूर्व विधायक भीमराव अंबेडकर का नाम आगे कर दिया।
अखिलेश के गृह जिले के हैं अंबेडकर
भीमराव अंबेडकर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गृह जिले इटावा के रहने वाले हैं। 2007 में वे इटावा की लखना सीट से बसपा से विधायक चुने गए थे। 2012 के चुनाव में बसपा ने उन्हें फिर टिकट दिया, लेकिन हार गए। 50 वर्षीय भीमराव को मायावती ने मीटिंग के पहले बुलवा लिया था। मीटिंग में उन्हें माला पहनाकर परिचय कराया और उनकी उम्मीदवारी का एलान किया।