ईरान में शुक्रवार को देश के 11वें संसदीय चुनाव के लिए वोट डाले गए. ईरान की एजेंसियों ने अनुमान लगाया है कि इस चुनाव में देश की कट्टरपंथी ताकतों को बढ़त हासिल हो सकती है. ईरान का ये चुनाव विवादों में रहा है. ईरानी सरकार ने कई प्रगतिशील और उदारवादी उम्मीदवारों का नामांकन रद्द कर दिया है. इस कदम को लेकर वहां पर असंतोष है.

ईरान में कुल 57,918,000 लोग मतदान करने के पात्र हैं. इन मतदाताओं ने 290 सदस्यों वाली संसद (मजलिस) के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. 290 सीटों के लिए लगभग 8000 उम्मीदवार मैदान में हैं. ईरान की मजलिस का कार्यकाल 4 साल का है. यहां सांसद बनने के लिए एक विजयी उम्मीदवार के पास अपने निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम 20 प्रतिशत वोट होने चाहिए.
ईरान का ये आम चुनाव तब विवादों में आ गया जब हजारों उम्मीदवारों को गार्जियन काउंसिल ने अयोग्य घोषित कर दिया. अयोग्य करार दिए गये पूर्व सांसद इलियाज हजरती ने निराशा जताते हुए कहा कि उन्होंने मतदान किया है. उन्होंने कहा, “गार्जियन काउंसिल ने तर्क दिया कि मैं इस्लाम नहीं मानता हूं.” पीटीआई के मुताबिक 16033 में से आधे उम्मीदवारों का पर्चा रद्द कर दिया गया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इन उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराये जाने का फायदा ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयोतोल्लाह अली खामनेई के विश्वस्त कट्टरपंथी नेताओं को मिलेगा और वे सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर पाने में सफल होंगे.
साल 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद देश में यह 11वां संसदीय चुनाव है. ईरान का चुनाव ऐसे वक्त पर हुआ है जब अमेरिका और ईरान के बीच तनाव चरम पर है. एक ओर अमेरिकी हमले में जनरल कासिम सुलेमानी की मौत होने से लोगों के मन में अमेरिकी सरकार के प्रति गुस्सा है, तो वहीं यूक्रेन के विमान को गलती से मार गिराए जाने के कारण देश में सरकार विरोधी स्वर भी तेज है. इस बीच शुक्रवार को FATF ने ईरान को प्रतिबंधित देशों की सूची से बाहर नहीं निकाला है.
इस चुनाव में राष्ट्रपति हसन रूहानी को लेकर मतदाताओं के मन में निराशा देखी जा रही है. 25 साल के रियल एस्टेट एजेंट अलीरेजा हाशमी ने कहा कि जब से हमने रुहानी को चुना, चीजें बिगड़ती गईं, उन्होंने अमेरिका के साथ एक बेकार सी डील साइन की और बिना गारंटी के पश्चिमी ताकतों की ओर मदद के लिए हाथ फैलाया.
बता दें कि रूहानी 2017 में नागरिकों को अधिक आजादी और पश्चिमी देशों से बेहतर संबंधों के वादे के साथ सत्ता में वापस आए थे. वर्ष 2018 में परमाणु करार से अमेरिका एकतरफा अलग हो गया और ईरान पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. इसके बाद ईरान आर्थिक मंदी और महंगाई से जूझ रहा है.
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal