जरायम की दुनिया का शातिर विकास दुबे अपराध करना और उससे बचना भी बखूबी जानता था। इसी वजह से वो अब तक तमाम संज्ञेय अपराधों से भी बचता रहा। चाहे वो थाने में घुसकर श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन और दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की थाने के अंदर ही हत्या का मामला हो या फिर कोई और गंभीर अपराध।
एक बात और सामने आई थी कि एक समय विकास ने अपने स्कूल के प्रिंसिपल की भी हत्या कर दी थी, उस मामले में भी उसे सजा नहीं हुई थी। राज्यमंत्री की हत्या के समय तो थाने में लगभग 20 लोग मौजूद थे मगर कोई गवाही देने को तैयार नहीं हुआ था। बीती 2-3 जुलाई को कानपुर के बिकरू गांव में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोपित विकास बहुत ही नाटकीय ढंग से पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहा। अब जब उसे उज्जैन में पकड़ा गया तो उसके शातिराना दिमाग का खेल भी सामने आ गया था।
पूरी तैयारी के साथ पहुंचा उज्जैन
सूत्रों के अनुसार दुबे के साथ कुछ और लोग थे, जो उज्जैन में ही ठहरे हुए थे। वहां पर पुलिस को यूपी की दो कारें भी मिली थीं। इसमें शुभम नामक व्यक्ति का नाम भी सामने आया। कहा जा रहा है कि ये सारा खेल शातिराना दिमाग वालों का रचा हुआ था। पुलिस ने विकास के साथ मौजूद दो स्थानीय व्यक्तियों को भी गिरफ्तार किया था। महाकाल मंदिर प्रांगण के बाहर लखनऊ के रस्जिट्रेशन नम्बर की गाड़ी मिलने के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि विकास दुबे काफी तैयारी के साथ वहां पहुंचा था।
अपना काम होने के बाद बंद कर देता था मोबाइल
उज्जैन में भी जब वो पकड़ा गया था तो उसके पास एक बैग मिला था। बैग में कुछ कपड़े, एक मोबाइल, उसका चार्जर और कुछ कागजात थे। विकास दुबे भागने के दौरान इसी मोबाइल फोन का प्रयोग कर रहा था। इसी मोबाइल से विकास दुबे ने कई लोगों से संपर्क भी किया था। अपने लोगों से सम्पर्क करने के बाद विकास फोन ऑफ कर लेता था और फिर फौरन अपनी जगह बदल लेता था।
फर्जी आइडी लेकर आया था मंदिर
विकास फर्जी आइडी लेकर उज्जैन के महाकाल मंदिर पहुंचा था। शंका होने पर जब उसे पुलिस चौकी लाया गया, तो उसने अपना नाम शुभम् बताया। आइडी में भी यही नाम था। इस पर पुलिस अफसर ने उससे मोबाइल नंबर लेकर डायल किया तो ट्रू कॉलर में दुबे लिखा आया। जब पुलिस ने सख्ती की तो शातिर गैंगस्टर ने यह कबूल लिया कि वह विकास दुबे है। महाकाल चौकी से थाने जाते समय उसने चिल्ला-चिल्लाकर कहा कि मैं विकास दुबे, कानपुर वाला।
किसी मंझे हुए वकील ने लिखी पूरी पटकथा
अपराध की दुनिया से जुड़े लोगों का कहना है कि जिस तरह से विकास दूबे ने उज्जैन में पकड़े जाने पर चीख-चीखकर ये बताया कि वो कानपुर वाला विकास दुबे है उससे ये बात साफ हो जाती है कि उसे ऐसा करने के लिए किसी मंझे हुए वकील की ओर से सिखाया गया था। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर क्रिमिनल एडवोकेट डीबी गोस्वामी का कहना है कि अभी तक विकास दुबे के बारे में जो चीजें सामने आ रही थीं उससे यही साबित हो रहा था कि वो एक शातिर अपराधी था। उसे अपराध करना और उससे बचना बखूबी आता था।
सामान्य अपराधी अपराध करने के बाद बच नहीं पाते
उनका कहना है कि आमतौर पर अपराधी अपराध तो कर लेते हैं मगर वो उससे बच नहीं पाते हैं मगर विकास दुबे का इतिहास देखा जाए तो वो अब तक तमाम तरह के अपराध करने के बाद उससे हमेशा बचता ही रहा था। यदि किसी वजह से वो अपराध करने के बाद पुलिस की गिरफ्त में आ भी गया था तो उसके खिलाफ सबूत नहीं होते थे, यदि सबूत मिल गए तो केस डायरी से अपना नाम तक हटवा लिया करता था। चूंकि अपराध करने के बाद पुलिस ही सारी कानूनी धाराएं लगाती है वो ही फाइल तैयार करती है, उसमें बदलाव करने, धाराएं हटवा लेने और चीजों को मैनेज कर लेना उसे बखूबी आता था।
बच्चों को जरायम की दुनिया से रखा है दूर
एक बात और गौर करने वाली है कि विकास को ये पता था कि अपराध की दुनिया में कितनी तरह की मुसीबतें और टेंशन है इस वजह से उसने अपने एक बेटे को पढ़ने के लिए इंग्लैड भेजा हुआ था जिससे बेटा इस जरायम की दुनिया से दूर रहे। बेटा वहां पर मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है। ये एक शातिर बदमाश का ही दिमाग था कि उसने अपने पैतृक गांव को ही अपनी कर्म स्थली बनाए रखा और वहां पर अपना नेटवर्क मजबूत किया हुआ था।
सफेदपोश नेताओं का सिर पर हाथ
उनका कहना है कि इस तरह के शातिर बदमाशों के सिर पर कई सफेदपोश लोगों का हाथ रहता है, यदि सफेदपोश लोग इनके ऊपर हाथ न रखें तो उनका भी काम नहीं चल पाता है। इस वजह से वो इनको पालते हैं। जब जरूरत पड़ती है तो समय-समय पर इनका इस्तेमाल करते हैं। अक्सर चुनावों के दौरान नेता इन्हीं अपराधियों को अपने पक्ष में वोट दिलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।