हॉरर फिल्मों में प्रतिभा दिखाने का मिलता है दोहरा अवसर, हंसाने के अगले सेकेंड डराना एक टास्क

राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर की फिल्म ‘रूही’ का ट्रेलर काफी सराहना बटोर रहा है। 11 मार्च को फिल्म सिनेमाघरों में होगी। आने वाले दिनों में ‘भूत पुलिस’, ‘फोन भूत’, ‘भूल-भुलैया’ समेत कई हॉरर कॉमेडी फिल्में दर्शकों के सामने होंगी। हालांकि ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा के दौर से ही शुरू हो गया था इस मिजाज की फिल्मों का निर्माण, लेकिन इसे पृथक जॉनर के तौर पर पेश किए जाने का चलन नया है। हॉरर के साथ कॉमेडी का तड़का लगाने के पीछे फिल्मकारों की सोच व इस जॉनर की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता की वजहों की पड़ताल कर रही हैं प्रियंका सिंह…

हॉरर और कॉमेडी हिंदी फिल्मों के दो विस्तृत जॉनर हैं। खास बात है कि इन दोनों के साथ दूसरे जॉनर को मिलाकर एक नई कहानी तैयार कर ली जाती है, जैसे- रोमांटिक कॉमेडी या हॉरर थ्रिलर फिल्में, लेकिन हॉरर और कॉमेडी के मिलन से जो कहानियां निकली हैं, उनका क्रेज अलग ही देखा गया है। डर और हंसी को साथ में महसूस करना दर्शकों के लिए मजेदार अनुभव होता है। साल 1965 में जब अभिनेता महमूद ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म ‘भूत बंगला’ लेकर आए थे, उस वक्त के लिए हॉरर कॉमेडी का प्रयोग नया था।

भूतिहा माहौल में लोग हंसने की उम्मीद नहीं कर रहे थे। ‘चमत्कार’ और ‘हैलो ब्रदर’ जैसी फिल्मों में भी भूत हंसाते हुए नजर आए थे। हालांकि उन्हें हॉरर कॉमेडी के तौर पर प्रचारित नहीं किया गया था। मराठी फिल्म ‘झपाटलेला’ और तमिल फिल्म ‘मुनि 2 कंचना’ ने भी हंसाया और डराया। अक्षय कुमार अभिनीत ‘लक्ष्मी’, ‘भूल भुलैया’, राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर अभिनीत ‘स्त्री’ में हॉरर कॉमेडी का मेल काफी पसंद किया गया।

फिल्मकारों की दिलचस्पी: 

हॉरर कॉमेडी फिल्मों में नए फिल्ममेकर्स की दिलचस्पी बढ़ रही है। ‘स्त्री’ से अमर कौशिक ने निर्देशन में कदम रखा था। चरित्र कलाकार के संघर्ष पर कामयाब  फिल्म बनाने के बाद हार्दिक मेहता ने ‘रूही’ का निर्देशन किया है। हार्दिक कहते हैं, ‘मेरा  हॉरर से ज्यादा कॉमेडी से नाता रहा है। हॉरर जॉनर बहुत अच्छे काफ्ट की डिमांड करता है। आप जिस तरह से ड्रामा या कॉमेडी को शूट करते हैं उस तरह से हॉरर सीन को शूट नहीं कर सकते हैं। इस जॉनर में साउंड मिक्सिंग से लेकर म्यूजिक, वीएफएक्स और एडिटिंग सबका पैटर्न बदलता है। मेरे लिए चैलेंज था कि हल्की-फुल्की फिल्में बनाई हैं तो क्यों न इस जॉनर में कोशिश करूं। ‘द एविल डेथ’, ‘कंज्यूरिंग’ जैसी बेहतरीन फिल्में हमने देखी हैं। उन्हें देखने पर हमें पता रहता है कि आगे क्या होगा। यहां पर हम कहानी को कौतूहल की उस सीमा तक ले जाते हैं, लेकिन फिर एकाएक बदल देते हैं। कभी-कभी उस क्षण को हम हॉरर रख लेते हैं। कभी-कभी ऐसा ट्विस्ट लाते हैं कि लोगों को हंसी आ जाती है, क्योंकि लोगों की हॉरर से मैमोरी वहीं बंधी हुई है। ‘रूही’ में हमने हॉरर और कॉमेडी का बेहतरीन मिश्रण रचने की कोशिश की है।’

लेखन नहीं आसान:

हॉरर कॉमेडी फिल्मों का लेखन मुश्किल होता है, क्योंकि एक ही सिचुएशन में डर और हंसी दोनों आनी चाहिए। साल 2008 में रिलीज हुई फिल्म ‘भूतनाथ’ में अमिताभ बच्चन को भूत के किरदार में लाना एक नया प्रयोग था। ‘भूतनाथ’ के निर्देशक विवेक शर्मा कहते हैं कि मैं जब फिल्म की कहानी पर काम कर रहा था तो मेरे पास विकल्प था कि मैं इंटेंस इमोशनल फिल्म बनाऊं या डरावनी बना दूं। बचपन में जब हम सिनेमा हॉल में हॉरर फिल्म देखने जाते थे तो कोई एक चीखता था, बाकी हंसते थे। वे बातें मेरे दिमाग में थीं कि दर्शकों को हंसाते हुए डराते हैं। जो भूत सोचता है कि वो सबको डरा सकता है, उसे जब कोई बच्चा डराएगा तो क्या होगा। कहानी में भूत की मौत कैसे हुई, वह एंगल भी डाल दिया था। निर्माता रवि चोपड़ा को वही एंगल पसंद आया था। बच्चे और भूत के पहले सीन को लिखने में मुझे 20-22 दिन लगे। सीन में बैकग्राउंड म्यूजिक डालकर डराना आसान है, लेकिन उसमें कॉमिकल सीक्वेंस जोडऩा, दोनों जॉनर के साथ सीन को आगे बढ़ाकर कहानी को सही मोड़ पर खत्म करना मुश्किल काम है।

हंसाने के अगले सेकेंड डराना एक टास्क: 

अमर कौशिक कहते हैं कि ‘स्त्री’ के दौरान इस जॉनर को शूट करना भी लिखने जितना मुश्किल काम रहा। फिल्म स्लैपस्टिक कॉमेडी के जोन में न चली जाए, यह भी डर था। हॉरर फिल्मों में डर वाला माहौल शुरुआत से बनाना होता है। ह्यूमर के कुछ सेकेंड में डराना एक टास्क था। इसमें कलाकार के क्राफ्ट की भूमिका ज्यादा होती है। क्लाइमेक्स में राजकुमार राव का चुड़ैल के साथ सुहाग रात मनाने वाला दृश्य मजेदार था। उस सिचुएशन में किसी भी इंसान को डर लगेगा, लेकिन देखने वाले को हंसी आएगी। हमें संतुलित क्लाइमेक्स रखना था।

प्रतिभा दिखाने का डबल मौका:

एक दौर था जब भूतिहा फिल्में करने से बड़े सितारे हिचकिचाते थे, पर आजकल अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, जाह्नवी कपूर, कट्रीना कैफ, परिणीति चोपड़ा, कार्तिक आर्यन जैसे कलाकार इनका हिस्सा बन रहे हैं, क्योंकि यहां उन्हें प्रतिभा दिखाने का दोहरा मौका मिलता है। कट्रीना कैफ ‘फोन भूत’ और जाह्नवी कपूर ‘रूही’ में भूतनी का किरदार निभा रही हैं। राजकुमार राव का कहना है कि जब किसी एक जॉनर की फिल्म चल जाती है तो लगता है कि लोग उस जॉनर को पसंद कर रहे हैं। ‘स्त्री’ इसका उदाहरण है। ‘स्त्री’ और ‘रूही’ दोनों टाइटल हीरोइन के आसपास बुने गए हैं, लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि लीड कौन है। ऐसी फिल्मों में कहानी लीड होती है। ‘गोलमाल अगेन’ फिल्म कर चुके तुषार कपूर कहते हैं कि हम भूतों पर यकीन करें या न करें, लेकिन उन पर बनी कहानियों को देखना हमें पसंद है। मैं ‘लक्ष्मी’ फिल्म से निर्माता के तौर पर भी जुड़ा। ये सभी हॉरर कॉमेडी थीं। यह जॉनर थिएटर और डिजिटल के दर्शकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हो रहा है। ‘भूतनाथ’ में अमिताभ बच्चन को भूत के रोल में लेने को लेकर विवेक बताते हैं कि बच्चन साहब ने यह फिल्म की थी, क्योंकि उनको कहानी में नयापन लगा था। हालांकि लोग मुझे लोग डरा रहे थे कि यह फिल्म मत करो, बच्चन साहब को भूत के किरदार में कौन देखने आएगा। मेरे लिए बड़ा रिस्क था, क्योंकि फिल्म में शाह रुख खान और जूही चावला भी थे। फिल्म जब चली तो कलाकारों में इस जॉनर को एक्सप्लोर करने का आत्मविश्वास बढ़ा।

निवेश कम, रिटर्न ज्यादा: 

हॉरर कॉमेडी को पारिवारिक जॉनर में रखा जा सकता है। फिल्म ट्रेड एंड बिजनेस एनालिस्ट गिरीश जौहर का कहना है कि हॉरर जॉनर में ज्यादा रिटर्न मिलता है। इस जॉनर में स्पेशल इफेक्ट्स पर पैसे खर्च होते हैं, लेकिन बड़ी एक्शन फिल्मों के मुकाबले वह खर्च कम होता है। दर्शक इसे थिएटर में देखना पसंद करते हैं। ओटीटी की वजह से लोगों का माइडंसेट खुल गया है। इसलिए इस जॉनर को और एक्सप्लोर किया जा रहा है। हल्के-फुल्के सीन्स इसे हर वर्ग के दर्शकों की पसंद बनाते हैं। कॉमेडी जॉनर से पहले अभिनेत्रियां दूर रहती थीं, लेकिन हॉरर जॉनर मिक्स होने पर अब ये फिल्में महिलाओं के नजरिए से पेश की जा रही हैं। यह दर्शकों को आकर्षित करने का तरीका है। यही वजह है कि हॉरर कॉमेडी फिल्मों की फ्रेंचाइजी बनाई जा रही हैं। यह जॉनर नया नहीं है, बस ये फिल्में दर्शकों के माइंडसेट के साथ ज्यादा इंटेलिजेंट हो गई हैं।

 

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