झारखंड में बीजेपी की हार और गठबंधन की जीत के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेता हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी हेमंत सोरेन के सामने चुनौतियां कम नहीं होंगी. जनता की आशाओं पर खरा उतरने के लिए उनके सामने पांच प्रमुख चुनौतियां रहेंगी.

झारखंड सरकार पर इस वक्त 85 हजार 234 करोड़ का कर्ज है. 2014 में जब रघुवर दास ने सरकार संभाली थी तब राज्य पर 37 हजार 593 करोड़ का कर्ज था. मगर रघुवर सरकार आने के बाद राज्य का कर्ज और तेजी से बढ़ा. 2014 से पहले 14 वर्षो में आई सरकारों ने जितना कर्ज लिया था, उससे कहीं ज्यादा रघुवर सरकार ने लिया. ऐसे में मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन के सामने इस कर्ज को कम करने की चुनौती होगी. राज्य के किसानों पर भी छह हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है. ऐसे में मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों को इस कर्ज से उबारने की भी चुनौती हेमंत सोरेन के सामने रहेगी.
साल 2000 में बिहार से अलग होने के बाद से झारखंड के माथे पर गरीब राज्य का टैग लगा हुआ है. इस राज्य में अब भी 36.96 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है. गरीब राज्य के टैग से झारखंड को निजात दिलाना भी हेमंत सोरेन के लिए चुनौती है.
भुखमरी से होने वाली मौतों को लेकर कई बार झारखंड सुर्खियों में रह चुका है. यह वही राज्य है जहां वर्ष 2017 में सिमडेगा जिले में 11 साल की संतोषी नामक बच्ची भात-भात कहते मर गई थी. भूख से तड़पकर हुई मौत की इस घटना पर हंगामा मच गया था. आंकड़ों की बात करें तो झारखंड को हर साल करीब 50 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न चाहिए मगर यहां बेहतर से बेहतर स्थिति में भी 40 लाख मीट्रिक टन ही उत्पादन हो पाता है. इस 10 लाख मीट्रिक टन के अंतर को भर पाना हेमंत सोरेन के लिए चुनौती है.
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