समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के चंदाजीवी वाले बयान से भाजपा व हिंदू संगठनों पर साधे गए निशाने ने शब्दबाणों की सियासत को धार दे दी है। अखिलेश के बयान पर भाजपा की तरफ से उन पर हुआ तीखा पलटवार और संतों की तरफ से उन्हें बाबरीजीवी बताना इसे साबित भी कर रहा है।
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कौन कितना कामयाब होगा और किसकी चाल सियासी सफलता दिलाएगी, ये तो भविष्य बताएगा। लेकिन, इन बयानों ने यह साफ कर दिया है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद अयोध्या राजनीतिज्ञों को अब भी वोट दिलाऊ मुद्दा नजर आता है। उन्हें इसके सहारे हिंदू व मुसलमानों का ध्रुवीकरण कराना ज्यादा आसान नजर आता है।
हालांकि, अखिलेश का चंदाजीवी वाला बयान प्रधानमंत्री के किसानों के मुद्दे पर आंदोलनजीवी वाले बयान के जवाब में दिया गया है, लेकिन इसके पीछे की मंशा साफ नजर आ रही है। कोई राजनेता न तो अकारण कुछ बोलता है और न करता है। उसके हर शब्द और कदम के पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक मकसद जरूर छिपा होता है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि यह बयान अखिलेश के मुंह से यूं ही निकल गया। सपा मुखिया ने यह बयान देकर एक तरह से अपने वोट बैंक के समीकरण को साधने की कोशिश की है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि 90 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने बाबरी मस्जिद को बचाने के नारे के साथ जो सियासत शुरू की, उसने प्रदेश के 18.19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी में ज्यादातर को उनके साथ खड़ा कर दिया। आज भी सपा का मुख्य वोट बैंक यादव और मुसलमान ही हैं।
बसपा की राजनीति में सक्रियता से मुसलमानों का कुछ वोट सपा से छिटका जरूर है, लेकिन ज्यादातर का समर्थन इसी पार्टी के साथ ही रहा। सपा मुखिया जानते थे कि मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान पर उनकी तरफ से साधा गया निशाना उन्हें हिंदू संगठनों तथा भाजपा नेताओं के निशाने पर लाएगा। फिर भी उन्होंने बयान दिया।
राजनीतिक शास्त्री प्रो. एसके द्विवेदी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंदोलनजीवी शब्द का उपयोग व्यापक संदर्भ में किया था, लेकिन विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है। इसलिए वह इस तरह के हल्के-फुल्के शब्दों का अपनी तरह से प्रयोग करके वोटरों को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश करते हैं। लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मुद्दाविहीन होना शुभ संकेत नहीं हैं और इससे विपक्ष कोई बड़ी सफलता भी हासिल नहीं कर पाएगा। पर, माहौल तो बनता ही है। अखिलेश ने यही करने की कोशिश की है।
प्रो. द्विवेदी की बात सही भी लगती है। अखिलेश को पता था कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा, संतों और हिंदू संगठनों की तरफ से उन पर होने वाले हमले मुसलमानों के बीच उनकी राजनीतिक पकड़ व पहुंच को मजबूत ही बनाएंगे। इसीलिए शायद उन्होंने चंदाजीवी शब्द का इस्तेमाल कर भाजपा पर निशाना साधा।
भाजपा नेताओं, संतों-महात्माओं और विश्व हिंदू परिषद सहित अन्य कुछ संगठनों के नेताओं ने उन्हें बाबरीजीवी बताते हुए उन पर राजनीतिक हमला बोलकर अखिलेश के मकसद को एक तरह से पूरा कर दिया है।