कोरोना वायरस को एक अज्ञात विश्वासघाती शत्रु बताते हुए भारतीय वैज्ञानिकों का कहना है कि लापरवाही हुई तो हालात भयावह हो सकते हैं। देश में इस महामारी को अब तक 135 दिन पूरे हो चुके हैं।
इस वायरस को लेकर अब तक भारत में क्या-क्या कामयाबी हासिल की और आगे क्या चुनौती है? इसे लेकर पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के निदेशक डॉ. प्रिया अब्राहम और डब्ल्यूएचओ के पूर्व महामारी रोग निदेशक राजेश भाटिया ने शुरुआती 100 दिनों की समीक्षा की है।
इसे आईजेएमआर के कोविड-19 अंक में प्रकाशित किया जा रहा है। एनआईवी में पहले दिन से ही महामारी पर जांच, कंटेनमेंट योजना, दवा और वैक्सीन ट्रायल चल रहे हैं।
कोरोना वायरस को लेकर कई गणितीय आकलन सामने आ रहे हैं। इसे लेकर इन्होंने सिफारिश की है कि महामारी की लड़ाई में इस तरह के आकलन पर भरोसा करना नुकसानदायक हो सकता है।
इनका कहना है कि लॉकडाउन के दौरान नौकरी जाने और खाने की कमी के चलते प्रवासी मजदूरों का बड़ी तादाद में पलायन देखने को मिला।
इसका अनुमान पहले नहीं था जिसके चलते बीमारी का विस्तार देखने को मिला। इसलिए इससे निपटने के लिए राज्यों के पास कंटेनमेंट योजना और सर्विलांस ही विकल्प है।
कोरोना वायरस सहित लाखों तरह के संक्रामक रोग जंगली जानवरों के जरिए प्रसारित हो रहे हैं। इनमें अधिकांश जानवरों से इंसान तक पहुंच रहे हैं।
ऐसे में एक संयुक्त निगरानी की आवश्यकता है जिसके जरिए इंसान और जानवर दोनों पर नजर रखी जा सके। ताकि जूनोटिक संक्रमण का पता पहले से चल सके।
एक लंबे लॉकडाउन के बाद भी मरीजों की संख्या कम न होने को लेकर उनका कहना है कि 24 मार्च की रात से लॉकडाउन लागू हुआ। लेकिन इसका असर मई में दिखाई दिया।
जब संक्रमण की दर 19 अप्रैल को 3.4 से बढ़कर 7.5 फीसदी और फिर मई के दूसरे सप्ताह में 12.9 फीसदी पहुंच गई। हालांकि हर दिन देश के अलग हिस्सों में पहुंचना लॉकडाउन के कार्यान्वयन की ओर इशारा करता है राहत की बात है कि देश में महामारी एक जैसी नहीं रही है।