हाथों में नहीं थी भाग्यरेखा फिर भी रामदेव ने खड़ा किया अरबों का कारोबार

हाथों में नहीं थी भाग्यरेखा फिर भी रामदेव ने खड़ा किया अरबों का कारोबार

योग गुरु बाबा रामदेव की जीवनी पर एक टेलीविजन शो ‘स्वामी रामदेव : एक संघर्ष’ 12 फरवरी से शुरू हो रहा है. इस कार्यक्रम में गुमनामी से प्रख्यात योग गुरु और फिर आयुर्वेद का दिग्गज ब्रांड खड़ा करने तक रामदेव की जीवन यात्रा को दर्शाया जाएगा. कार्यक्रम का निर्माण अजय देवगन फिल्म प्रोडक्शंस और वाटरगेट प्रोडक्शन कर रहे हैं. प्रोग्राम शुरू होने से पहले एक प्रेस कांफ्रेंस में योगगुरु ने अपने जीवन के बारे में बात की. उन्होंने बताया, ‘मेरा हाथ देखकर कहते थे कि मेरे हाथों में भाग्यरेखा नहीं है. मैंने कभी इस बात पर विचार भी नहीं किया. विवेकानंद के आदर्शों पर चलकर मैं आज यहां पहुंचा हूं. भारत देश में जन्म लेना ही मेरे सौभाग्य है. मैनें भविष्य की योजना भी बना ली है. 50 सालों का मास्टर प्लान तैयार है, जिसमें बच्चों को शिक्षित करना ही एक मात्र उद्देश्य है.’ बाबा रामदेव का जीवन किसी करिश्में से कम नहीं है. आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में…हाथों में नहीं थी भाग्यरेखा फिर भी रामदेव ने खड़ा किया अरबों का कारोबार

बाबा रामदेव का जन्म साल 1965 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ में हुआ था. उनका असली नाम रामकिशन यादव है. उन्हें  महज आठ साल की उम्र में आधे शरीर में पैरालिसिस का अटैक आ गया था. इसके बाद बाबा रामदेव बिस्तर से उठ नहीं सकते थे. आज भी उनकी एक आंख पर उस अटैक का असर दिखता है.

बाबा रामदेव के हाथ में योग से जुड़ी एक किताब हाथ लगी. इस किताब के पन्ने पर लिखा था कि योग करने से मन और तन पर कंट्रोल किया जा सकता है. इस किताब पढ़कर ही उन्होंने योगा करना शुरु किया. रामदेव का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. उन्होंने खानपुर के गुरुकुल में एडमिशन में ले लिया. यहीं पर उनकी मुलाकात बालकृष्ण से हुई थी. गुरुकुल के बाद वह कलवा आश्रम चले गए थे. जहां उनकी मुलाक़ात आचार्य बलदेव से हुई.

आर्चाय बलदेव ने उनको राम और किशन में से एक नाम चुनने को कहा. बाबा ने राम को चुना और उनके गुरु ने उसमें देव जोड़ दिया. ऐसे में वह रामकिशन से बाबा रामदेव हो गए. वहीं, हिमालय पर ही उनकी मुलाक़ात आचार्य मुक्तानन्द और आचार्य वीरेन्द्र से हुई थी.  इन्हीं सब आचार्यों की मदद से वो अपने योग के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उद्देश्य के लिए हिमालय छोड़कर हरिद्वार आ गये.

1993 में हिमालय से लौटने के बाद साल 1995 में वे कृपालू आश्रम के अध्यक्ष स्वामी शंकरदेव के शिष्य बन गए.  इस आश्रम की स्थापना स्वामी कृपालु देव ने 1932 में की थी.

1995 के बाद बाबा रामदेव बड़े बड़े शिविर आयोजित करने लगे. जिसमें कई बड़े अधिकारी, नेता और मंत्री भी आने लगे. साल 2001 में उन्हें संस्कार चैनल ने बाबा रामदेव के प्रोग्राम को 20 मिनट का स्लॉट दिया. इसके बाद बाबा रामदेव संस्कार चैनल से आस्था चैनल पर चले गए.

बाबा रामदेव और बालकृष्ण आपस में संस्कृत में बात करते हैं. दोनों को ये अभ्यास गुरुकुल के दिनों से हुआ. रामदेव को बालकृष्ण की मातृभाषा नेपाली भी खूब आती है. इसके अलावा वह मराठी और गुजराती भी कुछ कुछ समझते हैं. अंग्रेजी सीखने का अभ्यास कर रहे हैं. बाबा के लिए सबसे कीमती चीज है उनका स्कूटर. बजाज कंपनी का. जो आज भी उनकी गौशाला में रखा रहता है. नब्बे के दशक की शुरुआत में इसी पर सवार हो वह हरिद्वार में दवाइयां बेचते थे.

इसीलिए इस स्कूटर को आज तक नहीं बेचा. रामदेव सिर्फ अपने उत्पादों को लेकर ही नहीं, बाकी चीजों में भी स्वदेसी के आग्रही हैं. इसलिए महिंद्रा स्कॉर्पियो से ही चलते हैं. माइक्रोमैक्स का फोन यूज करते हैं.

रामदेव की कुटिया के गेस्ट रूम में वोल्टास का एसी लगा है. खुद उनके कमरे में एसी नहीं है. एक वीडियोकॉन का टीवी जरूर है. रामदेव को फोन करो तो कभी हैलो नहीं बोलते. ओम बोलते हैं. ये संबोधन सत्यार्थ प्रकाश के अनुकूल है, जिसे वह जीवन बदल देने वाली किताब मानते हैं. इसके संपर्क में वह हरियाणा में गुरुकुल में शुरुआती शिक्षा पाने के दौरान आए.

रामदेव की कुटी में चार कमरे हैं. एक में मेहमान रहते हैं. एक बेडरूम. एक लाइब्रेरी और एक किचन. गेस्ट रूम में एसी है. बेडरूम में नहीं. बेडरूम में बेड है. बुक शेल्फ है. पढ़ाई की मेज है. बाबा फर्श पर सोते हैं. और इस तथ्य का अपने जुमले में इस्तेमाल भी करते हैं. बकौल रामदेव, मैं भले ही जमीन पर सोऊं. नौकरी पर करोड़ों की सैलरी वालों को रखता हूं.इनपुट: कौशिक डेका की किताब ‘बाबा रामदेव- फ्रॉम मोक्ष टु मार्केट

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