भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर सियासी विकल्प बनने में जुटे हैं। दो साल से प्रदेश की तमाम घटनाओं पर उनकी मुखरता और अनुसूचित जाति व मुस्लिमों के एक तबके का उनके पक्ष में समर्थन इन संभावनाओं को प्रबल बना रहा है। हाथरस मामले में पहले ही दिन से उनकी सक्रियता ने यह बात साफ कर दी है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह सियासी ताकत के रूप में मैदान में दिखाई दे सकते हैं।
उन्होंने अब राजनीतिक दल भी बना लिया है। इससे लगता है कि एससी के वोटों में बंटवारा कर मायावती के साथ अन्य राजनीतिक दलों के लिए वे चुनौती खड़ी सकते हैं। अनुसूचित जातियों से जुड़े मुद्दों पर मुखरता, नागरिकता संशोधन कानून और मुस्लिम सवालों को लेकर उनकी सक्रियता और तेवरों ने पश्चिमी यूपी में मुस्लिमों के बीच भी उनकी पैठ बढ़ाई है। प्रगतिशील व्यवस्था के प्रति विद्रोही तेवर पसंद करने वाले युवाओं के बीच भी चंद्रशेखर लोकप्रिय हैं। इससे पश्चिम से पूरब तक विस्तार की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता
चंद्रशेखर की सक्रियता की बानगी कई बार मिल चुकी है। वह चाहे 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में एससी-ठाकुरों का संघर्ष हो या अन्य घटनाएं। दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहले भी बड़े प्रदर्शन कर चुके चंद्रशेखर के आह्वान पर हाथरस घटना के दोषियों पर कार्रवाई को लेकर बीते शुक्रवार को दिल्ली में हुए प्रदर्शन में उमड़ी भीड़ ने उनकी सियासी हैसियत में और इजाफा किया है। प्रदर्शन में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, जानी-मानी नेता वृंदा करात, डी राजा जैसे नेताओं का शामिल होना यह बताने को पर्याप्त है कि बड़े राजनीतिक चेहरे उनमें सियासी संभावनाएं देख रहे हैं।
चंद्रशेखर ने 2015 में भीम आर्मी बनाकर एससी युवाओं को लामबंद करना शुरू किया था। धीरे-धीरे वे अनुसूचित जाति की सियासी आकांक्षाओं का प्रतीक बनने लगे। उनकी एससी वोटों को लामबंद कर मायावती का विकल्प बनने की इच्छा का प्रमाण इसी से मिलता है कि उन्होंने इसी वर्ष 15 मार्च को बसपा के संस्थापक कांशीराम की जयंती पर बीएसपी से मिलते-जुलते नाम वाली आजाद समाज पार्टी (एएसपी) का गठन किया है जिसका झंडा भी बसपा की तरह नीला है।