हरियाणा में राज्‍यसभा चुनाव में कायम हुई हुड्डा की चौधर, लेकिन बढ़ा पार्टी का संकट

हरियाणा में तीन सीटों के लिए राज्‍यसभा चुनाव में अपने बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस उम्‍मीदवार बनवाकर भूपेंद सिंह हुड्डा ने पार्टी की सियासत में अपनी चौधर कायम की। लेकिन, इसे हरियाणा कांग्रेस का संकट बढ़ सकता है और पार्टी में एक बार फिर बगावत की संभावना है। राज्य में अशोक तंवर के प्रदेश अध्यक्ष रहते जिस तरह का माहौल था, ठीक उसी तरह के हालात अब फिर बनते दिखाई दे रहे हैं। इसकी वजह पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की हाईकमान में मजबूत पकड़ को माना जा रहा है।

दीपेंद्र हुड्डा को टिकट दिलाकर पावरफुल साबित हुए हुड्डा, क्रास वोटिंग का खतरा टाला

हुड्डा न केवल अपने पूर्व सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह को राज्यसभा भेजने में सफल हो गए, बल्कि सोनिया गांधी की बेहद नजदीकी कु. सैलजा का टिकट कटवाकर हुड्डा ने साबित कर दिया कि उनमें हारी हुई बाजी जीतने की पूरी क्षमता है।

हुड्डा दो बार हरियाणा के सीएम रह चुके हैं और फिलहाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता की बागडोर भी हुड्डा के पास ही है। हुड्डा पिछले कई सालों से अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की मुहिम में लगे हुए थे, लेकिन उन्हें सफलता विधानसभा चुनाव के आसपास हाथ लगी। यह बात खुद कांग्रेस हाईकमान भी मानता है कि यदि समय रहते तंवर को हटाकर हुड्डा या उनकी पसंद को प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंप दिया जाता तो हरियाणा में अलग ही राजनीतिक माहौल बन सकता था।

कुमारी सैलजा को टिकट मिलने पर भाजपा करा सकती थी क्रास वोटिंग, सैलजा-हुड्डा की बढ़ेंगी दूरियां

बहरहाल, कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा व सैलजा की जोड़ी को चुनाव मैदान में उतार दिया। हुड्डा और सैलजा पुराने राजनीतिज्ञ हैं। कहा जाता है कि हुड्डा को सीएम बनवाने में सैलजा का कभी योगदान रहा है, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की वजह से सैलजा व हुड्डा के राजनीतिक रिश्तों में दरार पड़ गई थी। तंवर को हटाकर जब सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बारी आई तो हुड्डा को इस पर ऐतराज नहीं हुआ, क्योंकि उनका टारगेट तंवर थे। हुड्डा और सैलजा की जोड़ी फील्ड में उतरी तो यह संदेश गया कि अब कांग्रेस में नए सिरे से जान फूंक दी गई है।

मध्यप्रदेश के राजनीतिक माहौल को भांपकर हुड्डा की पसंद को नजर अंदाज नहीं करना चाहता था हाईकमान

हरियाणा में कांग्रेस के 31 विधायक चुनकर आए। इनमें आधा दर्जन टिकट सैलजा की पसंद के हैं, लेकिन सैलजा समर्थक विधायकों की संख्या तीन से चार बताई जाती है। ऐसे में हुड्डा विधानसभा में भी पावरफुल हो गए। अब राज्यसभा के चुनाव में टिकट की बारी आई तो हुड्डा ने किसी तरह का रिस्क नहीं लिया और सैलजा का अपने विधायकों की ओर से खुला विरोध करा दिया।

कांग्रेस हाईकमान को संदेश दिया गया कि यदि सैलजा को टिकट मिला तो क्रास वोटिंग हो सकती है और भाजपा इसका फायदा उठा सकती है और यदि दीपेंद्र को टिकट दिया गया तो सभी विधायक एकजुट होकर उन्हें वोट देंगे। कांग्रेस हाईकमान को यह भी बताया गया कि कुछ जजपा और कुछ निर्दलीय विधायक हुड्डा के संपर्क में हैं, जिनका फायदा पार्टी को मिल सकता है।

मध्यप्रदेश के हालात देखकर कांग्रेस हाईकमान हुड्डा के दबाव में तो आया ही, लेकिन उनकी पसंद को तरजीह देना हाईकमान की मजबूरी भी बन गया था। क्रास वोटिंग से बचने के लिए दीपेंद्र को चुनावी रण में उतारना जरूरी हो गया था। दीपेंद्र के नामांकन में सैलजा के नहीं आने का मतलब साफ है कि अब राज्य में फिर से सैलजा व हुड्डा के बीच दूरियां बढ़ सकती हैं।

कुलदीप बिश्‍नोई पहले ही कांग्रेस नेतृत्व को सिंधिया प्रकरण से नसीहत लेने की चुनौती दे चुके हैं, जबकि रणदीप सुरजेवाला पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के दरबार के नेता हैं। अशोक तंवर भी अब अंदरखाते सैलजा से संपर्क बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं, जबकि किरण चौधरी और कैप्टन अजय यादव की अपनी खुद की राजनीति है। ऐसे में हुड्डा की बादशाहत तो कायम हो गी, लेकिन कांग्रेस का संकट बढ़ गया है।

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