हरियाणा : धूप न निकलने से गेहूं में पीला रतुआ का खतरा

दो सप्ताह से धूप नहीं निकलने और बारिश न होने से से यमुनानगर में गेहूं की फसल में पीलापन आ गया है। फसल में आए पीलेपन से किसान भी परेशान हो गए हैं। किसान फसल के पीलापन को पीला रतुआ समझ रहे हैं। इस पर किसान दवाओं व कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फिलहाल जिले में कहीं भी पीला रतुआ के संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन एक सप्ताह बाद का समय गेहूं की फसल के लिए काफी हानिकारक माना जा रहा है। ऐसा इसलिए जनवरी के आखिरी सप्ताह से लेकर 15 फरवरी तक गेहूं की फसल में पीला रतुआ आने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है। ऐसे में वैज्ञानिक फसल की निगरानी रखने की सलाह दे रहे हैं। जिले में गेहूं का रकबा करीब 85 हजार हेक्टेयर है।

इस बार कड़ाके की ठंड ने कई साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। सर्दी के साथ-साथ घना कोहरा व तेज हवाएं चल रहीं हैं। दो सप्ताह में केवल दो दिन ही कुछ घंटे के लिए धूप निकली है। इससे गेहूं की फसल पर बहुत खराब असर पड़ रहा है। गेहूं की फसल में पत्तियां पीली होने लगी हैं। कई जगह तो पूरे के पूरे खेत ही पीले हो गए हैं। इसे देख कर किसान काफी परेशान है।

उनकी परेशानी जायज ,है क्योंकि यही समय गेहूं में पीला रतुआ बीमारी की एंट्री का होता है। यदि फसल में पीला रतुआ जाए तो गेहूं का उत्पादन बहुत बुरी तरह से प्रभावित होता है। इतना ही नहीं यदि एक खेत में यह बीमारी आ जाती है तो हवा के साथ दूसरे खेत में खड़ी फसल को भी अपनी चपेट में ले लेती है। पीलापन को देखते हुए किसान खेत में विभिन्न दवाइयों व कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे हैं।

आरसीआईपीएमसी की टीम भी कर चुकी है निरीक्षण
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय आरसीआईपीएमसी फरीदाबाद से आए वैज्ञानिकों की टीम भी जिले में गेहूं की फसल में आए पीलेपन का निरीक्षण कर चुकी है। वैज्ञानिकों ने खंड जगाधरी के रटौली गांव में फसल का सर्वेक्षण किया था। टीम में वनस्पति संरक्षण अधिकारी डॉ. लक्ष्मीचंद, सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी डॉ. सूरज बरनवाल, विषय विशेषज्ञ (शस्य) डॉ. हरीश पांडे, तकनीकी सहायक डॉ. कुलदीप सिंह व खंड कृषि अधिकारी जगाधरी डॉ. संतोष कुमार शामिल थे। टीम ने किसानों को सलाह दी कि गेहूं की फसल में पीला रतुआ बीमारी के प्रति जनवरी में सतर्क रहे। गेहूं की फसल में पत्तियों पर समांतर पीले व नारंगी धब्बे एक लाइन में दिखाई दें तो यह रोग की शुरुआत है। रोग अधिक होने पर यह धब्बे पीले रंग के हल्दीनुमा पाउडर में बदल जाते है। आखिर में पत्तियां काली हो जाती हैं।

फसल की निगरानी करें : संदीप रावल
कृषि विज्ञान केंद्र दामला के समन्वयक डॉ. संदीप रावल का कहना है कि अभी कहीं पीला रतुआ के लक्षण नहीं दिखे हैं। इस बार धूप कम निकली और बूंदाबांदी भी नहीं हुई। हल्की बूंदाबांदी होती है तो पीलापन दूर हो जाएगा। फिर भी किसान दो किलोग्राम एनपीके 200 लीटर पानी में या फिर 200 लीटर पानी में पांच किलोग्राम यूरिया व 700 ग्राम 33 प्रतिशत मात्रा वाला जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट घोल कर फसल पर स्प्रे करे। जनवरी के आखिरी सप्ताह से 15 फरवरी तक फसल में पीला रतुआ लगने का समय होता है।

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