केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में चल रहे सीमा गतिरोध के बीच पड़ोसी देश पर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, चीन वास्तविक सीमा रेखा (एलएसी) पर भारी संख्या में सेना तैनात करने के लिए ‘पांच अलग-अलग स्पष्टीकरण’ दे चुका है।
उन्होंने यह भी कहा कि चीन की तरफ से द्विपक्षीय समझौते के इस उल्लंघन ने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचाया है और आपसी रिश्ते अब पिछले 30-40 साल के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं।
विदेश मंत्री ने यह बात एक ऑस्ट्रेलियाई राजनीतिक थिंकटैंक की ऑनलाइन चर्चा में कही। भारत और चीन के बीच एलएसी पर चल रहा गतिरोध सात महीने से ज्यादा लंबा हो चुका है। इस हिसाब से विदेश मंत्री की टिप्पणी को बेहद अहम कहा जा सकता है।
जयशंकर ने पिछले तीन दशक के द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा, हम आज चीन के साथ हमारे संबंधों के शायद सबसे कठिन दौर में हैं। निश्चित तौर पर पिछले 30 से 40 साल या आप कह सकते हैं उससे भी ज्यादा समय के दौरान यह सबसे ज्यादा कठिन समय है।
उन्होंने कहा, इस साल संबंधों को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा है। हम इस बात पर स्पष्ट हैं कि एलएसी पर शांति और बराबरी ही संबंधों की प्रगति का आधार है। सीमा पर ऐसी स्थिति के साथ यह नहीं कहा जा सकता है कि अन्य सभी क्षेत्रों में जीवन की गतिविधि को आगे बढ़ाएं। यह गैर वाजिब है।
विदेश मंत्री ने कहा, हमने 1988 में ऐसी समस्या का सामना किया है। यह हमारे रिश्ते में एक अवरोध था। तब से हमारे बीच मतभेद थे, लेकिन मोटे तौर पर संबंधों की दिशा सकारात्मक रखी गई थी।
विदेश मंत्री ने कहा, पिछले 30 साल के दौरान चीन हमारा दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बनकर उभरा था। दोनों देशों के संबंधों ने व्यापार, यात्रा और विभिन्न अन्य क्षेत्रों में अहम तरक्की की थी, क्योंकि दोनों देशों ने एलएसी पर शांति और सम्मान बनाए रखने के लिए विभिन्न समझौते किए थे। साथ ही साथ दोनों ही देश सीमा विवाद के मसले भी सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन एलएसी पर तनाव के चलते संबंधों में ऐतिहासिक गिरावट आई है। चीन ने 30 साल की दोस्ती पल में बरबाद कर दी।
विदेश मंत्री ने कहा, एलएसी पर गतिरोध को अब 8 महीने होने जा रहे हैं, लेकिन इसके खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे। दरअसल इसमें चीन का अजीब रवैया सबसे बड़ी रुकावट है। दोनों पक्ष अब तक कई बार बात कर चुके हैं, लेकिन चीन यह मूल मुद्दा नहीं समझ पा रहा है कि ‘समझौतों का पालन नहीं हो रहा है।’