हनुमानजी चिरजीवी होकर अयोध्या में विराजमान है, यहाँ की राजसत्ता उनके ही द्वारा नियंत्रित होती है

अयोध्या। मंदिरों से घंटे-घड़ियाल व शंख के साथ गूंजती राम धुन, अविरल बहती पवित्र पावन सलिला सरयू का जल, आस्था में डूबा श्रद्धालुओं का रेला, हजारों मंदिरों में विराजमान धनुषधारी भगवान व उनका दरबार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या की ऐतिहासिकता व पौराणिकता का बखान करते दिखाई पड़ते हैं। वहीं, शहर के वक्षस्थली पर स्थापित पौराणिक सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी इसकी आभा को चार चांद लगाता है। भव्य व दिव्य इस धार्मिक स्थल से ब्रह्मबेला में गूंजने वाली भजनों की ध्वनि से अयोध्या के साधु-संत व अयोध्यावासियों की निद्रा टूटती है और उनकी दिनचर्या प्रारंभ होती है। यह परंपरा 1940 से अनवरत चली आ रही है।

10 शताब्दी में एक ऊंचे टीले पर स्थापित हनुमानगढ़ी को देश में बजरंग बली की सबसे बड़ी सिद्धपीठ माना जाता है। मान्यता है कि वनवास से लौटने के बाद प्रभु श्रीराम ने पवन पुत्र को अयोध्या में रहने के लिए यही स्थान दिया था। अयोध्या में रामलला का दर्शन करने से पूर्व यहां दर्शन पूजन कर हनुमानजी की आज्ञा लेना आवश्यक होता है। आज भी देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु सरयू स्नान के बाद सर्वप्रथम यहां दर्शन-पूजन करते हैं। अपनी भव्यता व आध्यात्मिक छवि को समाहित करने वाले इस सिद्धपीठ की एक विशेषता यह भी है कि इस मंदिर में प्रतिदिन भोर की किरणें निकलने से पूर्व ब्रह्मबेला में बजने वाले भजनों से ही अयोध्या के हजारों साधु संत, स्थानीय लोगों की निद्रा टूटती है और वह अपनी नित्य क्रिया में लग जाते हैं।

यही नहीं अयोध्या के लोगों को इन्हीं भजनों से सुबह के समय का भी बोध होता है। सैकड़ों की संख्या में ऐसे भक्त हैं जो प्रतिदिन इसी धुन के साथ निद्रा त्याग कर सरयू स्नान को जाते हैं और वापस लौटकर हनुमानजी की आरती में शामिल होते हैं। यह परंपरा करीब आठ दशकों से चली आ रही है। करीब तीन सौ फुट ऊंचे बने इस मंदिर के शिवालय पर चारों दिशाओं में लगे चार लाउडस्पीकर से बजने वाली ध्वनि अयोध्या में पंचकोसी परिक्रमा की परिधि के अंदर रहने वाले लोगों तक पहुंचती है। यह भजन मंगलवार को तीन बजे व अन्य दिन भोर में चार बजे प्रारंभ हो जाता है। वह सुबह पांच बजे बजरंग बली की भोर की आरती के साथ समाप्त होता है। महान पार्श्व गायक मुकेश द्वारा गाई गई रामायण की चौपाइयां इस भजन का मुख्य आकर्षण हैं, सर्वप्रथम बजने वाले इस भजन में श्रीराम जन्म से लेकर नामकरण तक की मुख्य चौपाइयां शामिल हैं। श्रीरामजन्म के समय गाई जाने वाली स्तुति…भए प्रगट कृपाला दीन दयाला, कौसल्या हितकारी, इसका प्रमुख आकर्षण होती है। (संवाद)

अयोध्या के रहने वाले लोग कहते हैं कि इस भजन से ही उन्हें भोर होने का ज्ञान होता है। इसी भजन का सुनते-सुनते उनकी दैनिक दिनचर्या प्रारंभ होती है। पटवा मंदिर के बुजुर्ग पुजारी सत्येद्र दास कहते हैं कि करीब 40 वर्ष से वह इसे सुनते चले आ रहे, भोर के समय मंदिर के छत पर जाकर एकाग्र होने इसे सुनने से अद्भुत आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति होती है।

हनुमानगढ़ी के वयोवृद्ध संत व पूर्व सरपंच बचई दास कहते हैं कि यह भजन हमारे जीवन का अभिन्न अंग है, कभी शहर से बाहर जाना होता है तो भोर में यह भजन अपने आप कानों में गूंजता रहता है। साकेत महाविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. हरिश्चंद मिश्र कहते हैं कि यह भजन अयोध्या की धार्मिक व आध्यात्मिक छटा को और विद्यमान बनाता है। हमारा दिन इसी के साथ शुरू होता है। प्रात:काल टहलने के साथ इसका श्रवण हमें दिन भर तरोताजा बनाए रखता है। रिटायर्ड इंजीनियर बुजुर्ग जयराम पांडेय कहते हैं कि इस भजन को सुनने वाला अयोध्या व श्रीराम का होकर रह जाता है। युवा नवीन कहते हैं कि शिक्षा के दौरान बाहर रहने पर कहीं यह भजन सुनने पर अपनी अयोध्या की याद में आंखें नम हो जाती थी।

हनुमानगढ़ी के संत राजू दास कहते हैं कि बजरंग बली के आराध्य प्रभु श्रीराम की स्तुति करने वाले इस भजन को सुबह सुनने से मन से अशांति दूर होती है और मन प्रसन्न होता है। पार्श्व गायक मुकेश से गाई गई रामायण की चौपाइयों में श्रीरामजन्म से नामकरण तक की प्रमुख चौपाइयां हैं। इसके अलावा कवि व गायक प्रदीप के भजन इसे और मधुर बनाते हैं। भजन की महिमा बखान करते हुए कहते हैं कि श्रीरामजन्म की प्रमुख स्तुति भजन…भय प्रगट कृपाला दीन दयाला, कौसल्या हितकारी, के अंत में गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है कि…यह चरित जे गावहि हरिपद पावही, ते न परही भवकूपा। इसका अर्थ है कि जो इस पद को गाता है वह कभी अंधकार में नहीं रहता। कहते हैं कि हर रामभक्त को प्रतिदिन रामायण की इन चौपाइयों का श्रवण करना चाहिए, इससे उनके सभी कष्ट दूर हो सकते हैं।

अयोध्या के वरिष्ठ साहित्यकार व विद्धान डॉ. रामानंद शुक्ल कहते हैं कि हनुमानजी चिरजीवी होकर यहां पर विराजमान है, अयोध्या की राजसत्ता उनके ही द्वारा नियंत्रित होती है। उनकी परम सत्ता का आभास कराने के लिए इस हनुमत दुर्ग से प्रतिदिन दिवस की शुरूआत इन भजनों से होती है। बह्म बेला में सभी दैवीय शक्तियां सक्रिय होती हैं, इस दौरान भगवान का भजन करना व सुनना ज्यादा लाभदायी होता है। हनुमानजी वायु प्रधान, वायुतत्व है, उस समय भजन की ध्वनियां जब गूंजती हैं तो व वायु का स्पर्श पाकर चारों दिशाओं में रहने वाले तमाम श्रोताओं के कानों तक पहुंचकर शरीर में रोमांच पैदा करती है, सकारात्मक उर्जा उत्पन्न कर उन्हें सुख शांति प्रदान करती है।

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