पुरुषवादी समाज में फैसले-अधिकार के मामले में महिलाओं को हमेशा पिछड़ा समझा गया है, लेकिन ये बात अब पुरानी है. आज महिलाएं खुद को हर क्षेत्र में पुरुषों से बेहतर साबित करती हैं और सालों से चली आ रही रुढ़ियों को ध्वस्त कर रही हैं. यह बदलाव उन्होंने खुद की मेहनत और जागरुकता के बल पर हासिल किया है, ना कि किसी नेतृत्व के सहारे.
दुनियाभर में 80 शहरों से जुड़ेंगी महिलाएं
इसी मकसद को आगे बढ़ाने के लिए शनिवार को अमेरिका के शिकागो सहित विश्व के कई शहरों की महिलाएं एक साथ आगे आ रही हैं. वह भी बिना किसी बैनर, नेतृत्व या संगठन के. बताया जा रहा है कि दुनियाभर में 80 शहरों की महिलाएं इस रैली का हिस्सा बनेंगी.
इस रैली का मकसद, खुद के लिए राजनीति में मजबूत हिस्सेदारी, शारीरिक शोषण से मुक्ति, मांगों पर ध्यान देना और बाकी बुनियादी जरूरतों को केंद्र में लाना शामिल है. इन महिलाओं की आवाज है कि अब अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए सड़क पर उतरने का समय आ गया है.
WOMEN’S DAY: महिलाओं को गूगल का सलाम, बनाया खास डूडल
पहले भी हुए हैं कैंपेन
आपको बता दें कि ऐसी ही रैली पिछले साल भी हुई थी. और काफी हद तक सफल भी साबित हुई थी. सोशल मीडिया पर कुछ दिनों पहले चले एक कैंपेन #MeeToo, भी महिलाओं पर हो रहे शारीरिक शोषण के खिलाफ था, जो कि काफी प्रभावी साबित हुआ था. महिलाओं को स्वच्छ और उपयुक्त माहौल की जरुरत है जिससे कि वो हर क्षेत्र में खुद फैसला लेने में समर्थ हो सकें.
गोल्डन ग्लोब्स अवॉर्ड समारोह में मशहूर एंकर ऑपेरा की स्पीच, जिसमें उन्होंने कहा कि महिलाओं अब वक्त आ गया है, इतना प्रभावशाली रहा कि वह अमेरिका की अगली संभावित राष्ट्रपति की दौड़ तक में शामिल हो गईं.
जानकारों के अनुसार, महिलाओं का अपनी मांगों को लेकर ऐसे सड़कों पर उतरना महज एक इत्तेफाक नहीं है. जिस तरह महिलाएं वक्त के साथ खुद को सशक्त करके आगे आ रहीं हैं, बदलाव और समाज में बराबरी की मांग भी बढ़ी है. बदलाव की मांग केवल एक शहर या देश तक सीमित नहीं है. अमेरिका से लेकर बिहार या यूपी के गांवों तक पूरी दुनिया में सामाजिक असर के साथ राजनीतिक प्रभाव भी पड़ रहा है.
सेकुलर दलों में हिंदू वोटबैंक का लालच
महिलाएं एक निर्णायक वोट बैंक
महिलाएं एक निर्णायक वोट बैंक बनकर उभरी हैं जो अपनी मांगों के अनुरूप राजनीतिक भागीदारी करती हैं. महत्वपूर्ण तो यह है कि महिलाओं का वोटबैंक किसी धर्म या जाति पर निर्भर नहीं करता, बल्कि समाज को उन्नति की राह की ओर लेकर चलने में मदद करता है. ऐसे में शराबबंदी के पक्ष में आना और अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ महिलाओं का सड़क पर उतरना, यह सब जाति धर्म से अलग समाज को अलग दिशा में ले जाने के उदाहरण ही हैं.