सोशल मीडिया वॉल और चैट बॉक्स में चुनावी बयार चल रही ,जिसके कारण कभी किसी नेता के खिलाफ ट्रोलिंग तो कभी किसी के नेता का सनसनीखेज वीडियो व फोटो वायरल हो रहे

लोकसभा चुनाव-2019 के मद्देनजर चुनावी माहौल में जहां सोशल मीडिया को भी बड़े माध्यम के रूप में देखा जा रहा था, वहीं अब इसके दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं। सोशल मीडिया वॉल और चैट बॉक्स में चुनावी बयार चल रही है। कभी किसी नेता के खिलाफ ट्रोलिंग तो कभी किसी के नेता का सनसनीखेज वीडियो व फोटो वायरल हो रहे हैं।

साइबर सेफ्टी विशेषज्ञों के मुताबिक, शरारती तत्व और देश-विदेश में बैठे कुछ ऐसे लोग हैं, जो कि इस समय ‘डीपफेक’ के जरिये न केवल नेताओं और पार्टियों को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं, बल्कि जनता की भावनाओं के साथ भी खेल रहे हैं। ऐसे में ‘डीपफेक’ तकनीक चुनावी माहौल को विषाक्त करने के हथियार के तौर पर उपयोग में लाई जा रही है।

फिल्मों के सीन और फोटो से हो रही है छेड़छाड़

पिछले दिनों की कुछ घटनाओं में भोजपुरी व दक्षिण भारतीय फिल्मों के सीन को लेकर ऐसे मीम बनाए जा गए, जिसमें किसी नेता को किसी महिला के साथ मारपीट और छेड़छाड़ का दृश्य नजर आता है। इसके अलावा केरल में आई बाढ़ के दौरान आर्मी जवान द्वारा वहां के मुख्यमंत्री पर राहत व बचाव कार्य को रोकने का आरोप, चंडीगढ़ की युवती का जाली फोटो और हाल ही में हुए पुलवामा हमले के संदर्भ में कइयों को इस तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ा है। यह सभी घटनाएं प्रशासन और सरकारों तक पहुंची, लेकिन बावजूद इसके सोशल मीडिया की बेलगाम फॉरवडिर्ंग जारी है।

नहीं है कोई सख्त कानून

सोशल मीडिया और चैटिंग एप्स पर इस तरह के कंटेंट को लेकर चुनाव आयोग ने दिशा-निर्देश जरूर जारी किए हैं, लेकिन इस पर कोई सख्त कानून नहीं बना है। साइबर सुरक्षा एक्सपर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता पवन दुग्गल के मुताबिक सरकार को इस पर सख्त कानून बनाने की जरूरत है। कुछ समय पहले तेलंगाना चुनावों में भी इस तरह की चीजें सामने आई थीं।

प्रभावित हो रही है मानसिकता

एक जो लहर चल रही है, उसमें इस तकनीक के जरिये लोगों की मानसिकता और भावनाओं के साथ खेल रहे हैं। किसी भी नेता के बारे में या तो भ्रामक टेक्स्ट फारवर्ड करने का सिलसिला चल पड़ता है या फिर डीपफेक से बनाए वीडियो और ऑडियो की सत्यता जांचे बिना लोग उसे आगे से आगे बढ़ाते चले जाते हैं।

क्या है डीपफेक

डीपफेक ऐसी तकनीक है, जिसमें गहन अध्ययन करके आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से फेक या जाली ऑडियो, वीडियो और फोटो बनाई जाती है। इससे बनाया जा रहा कंटेंट सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है। ऐसे में नेताओं से लेकर पार्टियों से जुड़े लोगों की वीडियो व फोटो मीम सोशल मीडिया पर सकरुलेट किया जा रहा है। कुछ लोग इसे मजाक के तौर पर देख रहे हैं तो कुछ लोग गंभीरता से लेकर लोगों के बारे में अपनी राय कायम कर रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो डीपफेक तकनीक का उपयोग देश-विदेश में हो रहा है, जिसका असर भारतीय मतदाताओं की मानसिकता पर पड़ रहा है।

रक्षित टंडन (साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ) की मानें तो लोगों में जागरूकता का संचार करने की सख्त जरूरत है। हमारे यहां कोई सख्त कानून न होने से देश-विदेश के दुश्मन इसका फायदा उठा रहे हैं। चुनावी माहौल में इस तरह का कंटेंट किसी की छवि के लिए चुनौती साबित हो सकता है। इसके लिए चुनाव आयोग भी सख्ती दिखा रहा है, लेकिन फिर भी हमें इसे रोकना होगा, किसी भी न्यूज या वीडियो को फॉरवर्ड करने की आदत को छोड़ना होगा। यह हमारे देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए भी चुनौती बन रहा है।

वहीं, डॉ. पवन दुग्गल (साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट) के मुताबिक, ऐसे काफी मामले आ रहे हैं, जिसमें मौजूदा राजनीतिक स्थिति में व्यक्ति व पार्टी विशेष की छवि प्रभावित हो रही है। डीपफेक जैसी तकनीक के जरिये लोग फेक फोटो व वीडियो को असली जैसा बना देते हैं, जिससे लोगों का वास्तविक जीवन प्रभावित होता है। चुनावी माहौल में सोशल मीडिया पर इस तरह की घटनाएं निश्चित रूप से घातक साबित हो रही हैं।

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