ऑस्ट्रेलिया के मैक्वेरी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया, जिसके परिणाम ‘जर्नल सेल रिपोर्ट्स मेडिसिन’ में प्रकाशित हुए हैं। इस शोध ने यह साफ कर दिया है कि यह थकान केवल मानसिक नहीं, बल्कि शरीर के भीतर चल रही गहरी जैविक उथल-पुथल का परिणाम है।
रक्त और ऊर्जा का टूटता संतुलन
शोध टीम ने सीएफएस से पीड़ित 61 लोगों के रक्त के नमूनों की तुलना स्वस्थ लोगों से की। विश्लेषण में पाया गया कि इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की रक्त वाहिकाओं (वैस्कुलर) और प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) का संतुलन पूरी तरह बिगड़ जाता है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि मरीजों की कोशिकाओं को पर्याप्त ऊर्जा और रक्त प्रवाह नहीं मिल पा रहा था। शरीर की कार्यप्रणाली में आए इस व्यवधान के कारण ही व्यक्ति हर समय अत्यधिक थकान महसूस करता है, जिसका असर उसकी नींद, मूड और एकाग्रता पर भी पड़ता है।
‘ऊर्जा तनाव’ और सफेद रक्त कोशिकाएं
शोध के प्रमुख लेखक बेंजामिन हेंग के अनुसार, सीएफएस के मरीजों की सफेद रक्त कोशिकाओं में ‘ऊर्जा तनाव’ (Energy Stress) के स्पष्ट संकेत मिले हैं। इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने एटीपी (ATP) की जांच की, जो कोशिकाओं के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है।
एटीपी (ATP) में कमी: मरीजों के शरीर में एटीपी का उत्पादन कम हो रहा था।
एएमपी और एडीपी का बढ़ना: रक्त में एएमपी और एडीपी के उच्च स्तर पाए गए, जो इस बात का सबूत हैं कि शरीर अपनी ऊर्जा को दोबारा रीसाइकिल नहीं कर पा रहा है।
यह ऊर्जा मांसपेशियों के संकुचन और डीएनए निर्माण जैसे जटिल कार्यों के लिए बेहद जरूरी होती है, जिसकी कमी मरीजों को शारीरिक रूप से पंगु बना देती है।
कई प्रणालियों का एक साथ फेल होना
यह अध्ययन इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसमें एक ही मरीज के भीतर कई प्रणालियों की गड़बड़ी को एक साथ देखा गया। शोध में पाया गया कि:
प्रतिरक्षा प्रणाली में गिरावट: मरीजों में टी-लिम्फोसाइट्स, डेंड्रिटिक कोशिकाएं और ‘नेचुरल किलर सेल्स’ की संख्या कम और अपरिपक्व पाई गई।
रक्त प्रवाह में दिक्कत: रक्त वाहिकाओं की आंतरिक परत (एंडोथेलियम) से जुड़े प्रोटीन का स्तर असामान्य रूप से उच्च था।
मेटाबोलिज्म की गड़बड़ी: टी-कोशिकाओं और माइटोकॉन्ड्रियल ऊर्जा उत्पादन में दोष पाया गया।
इसे ‘आलस’ समझने की न करें गलती
बेंजामिन हेंग का कहना है कि क्रॉनिक थकान सिंड्रोम एक विषम रोग है। इसमें अलग-अलग जैविक प्रणालियां एक-दूसरे के साथ जिस तरह से प्रतिक्रिया करती हैं, उसी से यह तय होता है कि बीमारी के लक्षण कितने गंभीर होंगे। यह शोध भविष्य में इस बीमारी के बेहतर निदान और उपचार की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।
याद रखें, सीएफएस कोई सामान्य आलस नहीं है, बल्कि एक गंभीर जैविक स्थिति है जहां शरीर की ‘बैटरी’ कोशिका स्तर पर रिचार्ज होना बंद कर देती है।
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