सुबह की नमाज के साथ भोलेनाथ का जलाभिषेक करना नूर फातिमा के जीवन का हिस्सा बन चुका: वाराणसी

न नमाज आती है मुझको न वजू आता है, सजदा कर लेता हूं जब सामने तू आता है…। शिव की नगरी काशी को यूं ही नहीं गंगा-जमुनी तहजीब का शहर कहा जाता है। कबीर, रैदास और तुलसी की नगरी में अल्लाह और शिव की साथ-साथ आराधना की जाती है। हम बात कर रहे हैं डीरेका के गणेशपुर की रहने वाली नूर फातिमा की।
सुबह की नमाज के साथ ही भोलेनाथ का जलाभिषेक करना नूर फातिमा के जीवन का हिस्सा बन चुका है। जहां हर दिन वह शिव के धाम में शीश नवाती हैं वहीं हर दिन अल्लाह को याद करना नहीं भूलती हैं।
महाशिवरात्रि पर महादेव की पूजा का अवसर भी उनके लिए बेहद खास होता है। काशी में शिव हैं तो कण-कण में ईश्वर की मान्यता को नूर फातिमा ने कुबूल कर लिया है। उनकी हर सुबह की शुरुआत नमाज के साथ हर-हर महादेव के साथ होती है।

गणेशपुर कालोनी में एक मुस्लिम के घर में मंदिर बाहर के लोगों के लिए अनोखा होगा, लेकिन कालोनी के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। पेशे से वकील नूर फातिमा का कहना है कि 2004 में संयोग से भगवान शिव के पूजा की शुरुआत हुई जो आज जीवन का हिस्सा बन चुकी है। लखनऊ की रहने वाली नूर फातिमा के पति रेलवे में पोस्टेड थे और वह शादी के बाद वाराणसी आ गईं।

उन्होंने बताया कि 2004 में मुझे अजीबो गरीब सपने आते थे। सपने में अक्सर एक मंदिर नजर आता था जहां मैं पूजा करती थी। बनारस में घर बन गया और उसके सवा महीने बाद आसपास के लोगों के घरों में कई मौतें हुईं।
यहां तक हादसे में मेरे पति की भी मौत हो गई। कई सारे अपशकुन होते थे। मेरे मन में विचार आया कि गणेशपुर में शिव का मंदिर बनाया जाए तो इस पर कालोनी वालों ने भी सहमति जताई। ईश्वर की कृपा से दो बेटियां हैं। एक इंजीनियर और दूसरी बड़ी कंपनी में मैनेजर है।
मंदिर बनाने में साथी वकीलों और जनसहयोग के साथ खुद के पैसे से मदद मिली। संकटमोचन मंदिर के महंत स्व. वीरभद्र मिश्र ने 8 मार्च 2004 को मंदिर का शिलान्यास कराया। मंदिर में शिव परिवार सहित मूर्ति एवं शिवलिंग दोनों स्थापित है। सावन, शिवरात्रि पर विशेष पूजन किया जाता है। हर सोमवार को महिलाएं मंदिर में भजन व पूजा करती हैं।

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