New Delhi: हर प्राचीन हिंदू मंदिर अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए हैं। राजस्थान के सीकर में स्थित जीण माता मंदिर भी ऐसी ही कई कहानियां अपने में समेटे हुए हैं।
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एक मुस्लिम परिवार लगातार पिछले पांच पीढिय़ों से मां की सेवा में जुटा है। हिंदू पुजारी उस मुसलमान परिवार के प्रति गहरी सद्भावना व स्नेह रखते हैं। हिंदू-मुस्लिम एकता व आस्था के प्रतीक बने इस मुस्लिम परिवार की पांचवीं पीढ़ी के लोग आज भी जीणमाता मंदिर की सीढिय़ों को मशक के पानी से हर सुबह धोते हैं।
आस्था की इस परम्परा के पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहानी मुगल शासक औरंगजेब से जुड़ी है। जनश्रुति के अनुसार 17वीं शताब्दी में बादशाह औरंगजेब किसी अभियान के लिए इस क्षेत्र से गुजर रहा था। हिन्दू मंदिरों को तोडऩे के अपने कुत्सित प्रयास के दौरान उसने पहले हर्ष पर्वत पर हर्षनाथ भैरव मंदिर को तोड़ डाला। बाद में जीणमाता के मंदिर को तोडऩे की कोशिश की, तो मंदिर के गर्भ गृह की अखंड ज्योत से आग की लपटें तथा पास की एक गुफा से असंख्य मधुमक्खियां निकलने लगी।
आग व मधुमक्खियों के आगे बादशाह व उसकी सेना निढ़ाल हो गई तो अपने पीर-फकीरों की सलाह पर बादशाह ने देवी के समक्ष क्षमा याचना की और अपनी भूल स्वीकार कर देवी को कुल देवी के रूप में स्वीकार कर प्रतिज्ञा की, कि आज से मेरे वंशज व प्रतिनिधि माता को आराध्य के रूप में पूजेंगे। औरंगजेब ने अपने प्रतिनिधि के रूप में एक मुस्लिम परिवार को माता की सेवा में छोड़ दिया।
उसी परिवार के वंशज के रूप में भंवर सिक्का व उसका परिवार आज भी माता के मंदिर की सीढिय़ों को धोकर इस परम्परा को निभा रहे हैं। मंदिर व श्रद्धालुओं से मिलने वाली भेंट से अपना परिवार पालते हैं। भंवर सिक्का का कहना है कि माता के दर पर जात जड़ूला आदि की रस्में भी उनका परिवार व वंशज निभाते आ रहे हैं।
यहां के हिन्दू पुजारियों ने भी उसके साथ कभी भेदभाव नहीं किया बल्कि हर सुख-दुख में पुजारी परिवार उनकी मदद करता है। सिक्का का परिवार पास ही रैवासा में रहता है और हर सुबह परिवार का कोई प्रतिनिधि मंदिर में आकर परम्परा को निभाता है।
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