सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय अभयारण्यों के लिए अफ्रीकी चीता (Cheetah) लाने की इजाजत दी. कोर्ट ने कहा कि वह अफ्रीकी चीतों को नामीबिया से भारत लाकर मध्यप्रदेश स्थित नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में बसाने की महत्वाकांक्षी परियोजना के खिलाफ नहीं है. न्यायालय ने कहा कि बाघ-चीते के बीच टकराव के कोई सबूत रिकार्ड में नहीं हैं.
गौरतलब है कि देश में अब चीते नहीं बचे हैं. 1948 में सरगुजा के जंगल में आखिरी बार चीता देखा गया था. अब केंद्र सरकार इस प्रजाति की पुनर्स्थापना की कोशिशों में लगी है. वर्ष 2010 में केंद्र ने मध्य प्रदेश सरकार से चीता के लिए अभयारण्य तैयार करने को कहा था.
वन विभाग ने पहले चीता प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर अभयारण्य का प्रस्ताव दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से रोक दिया. क्योंकि कुनो पालपुर अभयारण्य को एशियाटिक लॉयन (बब्बर शेर) के लिए तैयार किया गया है. इसके बाद विभाग ने नौरादेही को चीता के लिए तैयार करना शुरू किया.
भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था. दोनों ही अभयारण्यों में लंबे खुले घास के मैदान हैं. चीता को शिकार करने के लिए छोटे वन्यप्राणी और लंबे खुले मैदान वाला क्षेत्र चाहिए. उन्हें छिपने के लिए घास की जरूरत होती है. विभाग ने नौरादेही से दस गांव हटाकर यह आवश्यकता पूरी कर दी है.
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने दलील दी कि मप्र सरकार ने नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में चीते फिर से बसाने के बारे में पत्र लिखा है, प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि नामीबिया से भारत में बसाये जाने वाले अफ्रीकी चीतों को मप्र के नौरादेही अभयारण्य में रखा जायेगा. भारत में अंतिम धब्बेदार चीते की 1947 में मृत्यु हो गयी थी और 1952 में इस वन्यजीव को देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था.