सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके चेन्नई में बनाई गई मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने के हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इन्कार कर दिया।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सार्वजनिक स्थानों या सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाने के अपने पूर्व आदेश का हवाला देते हुए कहा, अथॉरिटीज की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे अवैध निर्माण हटाएं। मौखिक टिप्पणी में कोर्ट ने यह भी कहा, अवैध रूप से बनाई गई इमारत धर्म की शिक्षा का स्थान नहीं हो सकती।
ये टिप्पणियां और आदेश जस्टिस सूर्य कांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने मस्जिद ए हिदाय और मदरसा की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए सोमवार को दिए। कोर्ट ने कहा, उन्हें हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने की जरूरत नहीं लगती।
जमीन चेन्नई मैट्रोपोलिटन डेवलेपमेंट अथॉरिटी की है। याचिकाकर्ता संस्था अवैध कब्जेदार है। उसने कभी भी इमारत का प्लान मंजूर कराने के लिए आवेदन नहीं किया। निर्माण पूरी तरह अवैध है। अथॉरिटीज की ओर से नौ दिसंबर, 2020 को नोटिस दिए जाने के बावजूद निर्माण जारी रहा।
अवैध निर्माण ढहाया जाए- सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता हिदाय मुस्लिम वेलफेयर ट्रस्ट के वकील ने जब हाई कोर्ट के नवंबर, 2023 के निर्माण हटाने के आदेश का विरोध किया तो कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में आदेश दे चुका है कि सार्वजनिक स्थान पर कोई अवैध निर्माण हो, तो चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद या कुछ भी उसे ढहाया जाए। सारे हाई कोर्ट उस आदेश की निगरानी कर रहे हैं और राज्य सरकारें भी उस बारे में उचित निर्देश जारी करती हैं।
वकील ने दलील दी कि वह जमीन बहुत लंबे समय से खाली पड़ी थी जिसका मतलब है कि सरकार को जनहित में उस जमीन की जरूरत नहीं थी। इस पर पीठ ने कहा कि क्या इसका मतलब है कि आप जमीन पर अवैध कब्जा कर लेंगे। जमीन सरकार की है, वह उसे प्रयोग करे या न करे, लेकिन आपको उस पर कब्जे का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने बिल्डिंग हटाने के लिए याचिकाकर्ता को 31 मई तक का समय दे दिया है।